हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पंचसप्तितम अध्याय: श्लोक 43-69 का हिन्दी अनुवाद
राजन! उस महान अभ्युदयकारी दिव्य पुष्प वाले वृक्ष को देखकर आनर्त निवासी बड़े प्रसन्न हुए। वे बारम्बार देखने पर भी तृप्त नहीं होते थे। उस वृक्ष पर बहुत से पक्षी मदमत्त होकर केलिकला में आसक्त हो रहे थे। उस अद्भुत, अचिन्त्य एवं उत्तम वृक्ष का दर्शन करने वाले वृद्धों की वृद्धावस्था तत्काल दूर हो गयी। उस वनस्पति की गन्ध सूंघकर रोगी नीरोग हो गये और जिनकी आँखें पहले अंधी थीं, वे उस समय दिव्य दृष्टि से सम्पन्न हो गये। पारिजात वृक्ष पर सफेद कोकिलों को मधुर बोली बोलते सुनकर आनर्त देश के निवासी मन ही मन बड़े प्रसन्न हुए और भगवान जनार्दन की वन्दना करने लगे। उस वृक्ष के समीप गये हुए मनुष्य नाना प्रकार के वाद्य और मीठे-मीठे गीत सुनते थे। मनुष्य अपने मन में जिस जिस मनोरम सुगन्ध के लिये संकल्प करते थे, वही तत्काल पारिजात वृक्ष से उनकी घ्राणेन्द्रिय में प्रकट हो जाती थी। तदनन्तर यदुनन्दन श्रीकृष्ण ने रमणीय द्वारकापुरी में प्रवेश करके महात्मा वसुदेव तथा माता देवकी का दर्शन किया। फिर क्रमश: कुकुरवंश के अधिपति उग्रसेन, भैया बलराम तथा यादवों में जो बड़े बूढ़े माननीय देवोपम पुरुष थे, उन सबसे वे मिले। तत्पश्चात उन सबका यथोचित पूजन करके उन्हें विदा करने के पश्चात आदि अन्त से रहित भगवान अच्युत अपने ही भवन में चले गये। गद के बड़े भाई उन मधुसूदन ने तरूश्रेष्ठ पारिजात को लेकर सत्यभामा के भवन में प्रवेश किया। देवी सत्यभामा ने अत्यन्त प्रसन्न होकर इन्द्र के छोटे भाई श्रीकृष्ण का पूजन किया और उस विशाल वृक्ष पारिजात को ले लिया। भारत! वह वृक्ष वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण की इच्छा के अनुसार कभी छोटा हो जाता था और कभी बहुत बड़ा। यह उसके विषय में बड़ी ही अद्भुत बात थी। भरतनन्दन! कभी तो यह वृक्ष इतना अधिक बढ़ जाता कि सारी द्वारका को आच्छादित कर लेता था और कभी हाथ पर रख लेने योग्य अंगूठे के बराबर हो जाता था। कुरुनन्दन! देवी सत्या उस मनोवांछित वृक्ष को पाकर बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने पुण्यक व्रत के लिए सामान जुटाना आरम्भ किया। कुरुकुलभूषण! जम्बूद्वीप में जो कोई भी उपयुक्त द्रव्य थे, उन सबका महात्मा श्रीकृष्ण ने संग्रह कर लिया। उस समय इन्द्र के छोटे भाई जितेन्द्रिय जनार्दन ने सत्यभामा के बताये और उनके द्वारा आचरण में लाये गये पुण्यक व्रत में दिये जाने वाले दान को ग्रहण करने के लिये सर्वगुण सम्पन्न नारद मुनि का स्मरण किया। इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में पारिजात का आनयनविषयक पचहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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