हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 2 श्लोक 19-37

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 19-37 का हिन्दी अनुवाद

तब ब्रह्मा जी ने उनके प्रति अत्यन्त प्रसन्नचित से कहा- 'तुम लोगों ने यह जो कुछ कहा है, वह सब पूरा होगा।' उन ‘षड्गर्भ’ नाम वाले दैत्यों को इस प्रकार वर देकर स्वयम्भूु ब्रह्मा जी ब्रह्मलोक को चले गये। उधर हिरण्यकशिपु ने रोष में भरकर उनसे कहा- अरे! तुमने मुझे छोड़कर कमलयोनि ब्रह्मा जी से वर ग्रहण किया है; अत: अपने प्रति मेरे स्‍नेह का त्याग करा दिया। अब तुम लोग मेरे शत्रुभूत हो, इसलिये तुम्हें त्याग देता हूँ। जिस पिता ने तुम्हें ‘षड्गर्भ’ नाम दिया और पाल-पोसकर बड़ा किया है, वही गर्भ में स्थित होने पर तुम सब लोगों का वध कर डालेगा। तुम छहों ‘षड्गर्भ’ नामक महान असुर देवकी के गर्भ में स्थित होगे। तब कंस (जो तुम्हारे पिता कालनेमि का ही स्वभरूप होगा) तुम गर्भस्थव बालकों का वध कर डालेगा। वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! उनकी याद आते ही भगवान विष्णु पाताल लोक में गये, जहाँ वे ‘षड्गर्भ’ नामक असुर संयमनिष्ठ होकर जल के भीतर गर्भगृह में शयन करते थे। उन्होंने देखा, सब ‘षड्गर्भ’ नामक दैत्य कालरूपिणी निद्रा से तिरोहित होकर जल के भीतर गर्भगृह में सो रहे हैं। तब भगवान विष्णु स्वप्न रूप से उनके शरीरों मे प्रविष्ट हुए और उनके जीवों को खींचकर उन्होंने निद्रा की अधिष्ठात्री देवी के हाथ में दे दिया। तत्‍पश्‍चात सत्य पराक्रमी भगवान विष्णु उस निद्रा से बोले- निद्रे! तुम मेरी प्रेरणा से इन जीवों को लेकर देवकी के घर के निकट जाओ। ये सब-के-सब षड्गर्भ नाम वाले श्रेष्ठ दानव हैं। इन सब षड्गर्भो को क्रमश: देवकी के गर्भ में स्था‍पित करती रहो। जब ये गर्भ जन्म लेकर कंस द्वारा यमलोक पहुँचा दिये जायँगे, जब कंस का प्रयत्न‍ निष्फल और देवकी का परिश्रम सफल हो जायगा, तब मैं तुम पर विशेष कृपा करूँगा।

देवि! उस समय से भूतल पर तुम्हारा प्रभाव मेरे प्रभाव के समान ही हो जायगा, जिससे तुम सम्पूर्ण जगत् की आराध्या देवी बन जाओगी। देवकी का जो सातवां गर्भ होगा, वह मेरा ही सौम्य अंश होगा और मुझसे पहले अवतीर्ण होने के कारण मेरा बड़ा भाई होगा और मुझसे पहले अवतीर्ण होने के कारण मेरा बड़ा भाई होगा। वह गर्भ जब सात महीने का हो जाय, तब उस सातवें मास में ही तुम उसे खींचकर रोहिणी देवी के गर्भ में स्थापित कर देना। गर्भ का संकर्षण होने से वह तरुणवीर ‘संकर्षण’ नाम से प्रसिद्ध होगा, चन्द्रमा के समान गौर वर्ण से सुशोभित दिखायी देता था वह मेरा बड़ा भाई होगा। उस समय लोग यही कहेंगे कि ‘देवकी का सातवां गर्भ कंस के भय से गिर गया'। आठवें शिशु के रूप में जब मैं गर्भ में आऊँगा, तब कंस मुझे भी मारने का प्रयास करेगा। देवि! तुम्हारा भला हो, इस समय भूतल पर ‘यशोदा’ नाम से विख्यात जो नन्द गोप की प्यारी पत्नी हैं, वे गोकुल की स्वामिनी हैं। तुम उन्हीं के नवम[1] गर्भ के रूप में हमारे कुल में उत्पन्न होगी। भाद्रपद कृष्ण पक्ष की नवमी[2] तिथि को ही तुम्हारा जन्म होगा। जब रात्रि युवावस्था में स्थित होगी, उस आधी रात के समय अभिजीत मुहूर्त के योग में मैं सुखपूर्वक गर्भवास का त्याग करूँगा (अर्थात माता के उदर से बाहर निकल आऊँगा)। हम दोनों भाई-बहिन गर्भ के आठवें महीने में जन्म लेंगे। फिर कंस के भावी विनाश का कारण प्राप्त होने पर हम दोनों साथ ही गर्भव्यबत्यास को प्राप्त होंगे (बदल दिये जायँगे)।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यह नवम संख्या देवकी के आठ पुत्रों की अपेक्षा से कही गयी है। जान पड़ता है, श्रीकृष्ण बाद कुछ काल के लिये योगनिद्रा का भी देवकी के उदर में प्रवेश हुआ था।
  2. एक ही रात में अष्ट़मी के बाद नवमी लग जाने पर देवी का यशोदा के गर्भ से प्राकट्य हुआ था- ऐसा समझना चाहिये।

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