हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 2 श्लोक 38-55

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 38-55 का हिन्दी अनुवाद

देवि! मैं तो यशोदा माता के पास पहुँच जाऊँगा और तुम देवकी का आश्रय लेना। हम दोनों के परिवर्तित गर्भ संयोग के विषय में कंस मूढभाव को ही प्राप्त हो (वह इस अदला-बदली के रहस्य से अनभिज्ञ ही रहे)। तदनन्तर कंस तुम्हारे पैर पकड़कर तुम्हें शिला पर पटक देगा, परंतु तुम उसके हाथ से निकलकर आकाश में शाश्वत स्थान प्राप्त कर लोगी। तुम्हारी अंग-कान्ति मेरी ही छवि के समान श्याम होगी, तुम आकाश में मेरी ही भुजाओं के समान दोनों ओर दो-दो हष्ट-पुष्ट विशाल बाहें धारण करोगी। चार भुजाओं में तीन शाखाओं से युक्त शूल (त्रिशूल), सोने की मूठ लगी हुई तलवार, मधु से भरा हुआ पात्र तथा अत्यन्त निर्मल कमल धारण करके सुशोभित होगी। तुम्हारे श्रीअंग में नीले रंग की रेशमी साड़ी शोभा पायेगी और तुम रेशमी पीताम्बर की चादर ओढ़े रहोगी। तुम्हारे वक्ष:स्थल में चन्द्रमा की किरणों के समान प्रकाशमान श्वेत हार शोभा दे रहा होगा। दिव्य‍ कुण्डलों से मण्डित कर्ण युगल तुम्हें विभूषित करेंगे और चन्द्रमा की भी शोभा को छीन लेने वाले अपने मनोरम मुख से तुम अत्यन्त शोभायमान होओगी। तुम्हारे मस्तक पर विचित्र मुकुट और शोभा शाली केशबन्ध फबते होंगे। भुजंगों की सी आभा वाली अपनी भयानक भुजाओं से तुम दसों दिशाओं की शोभा बढ़ाओगी। मोर पंख से विभूषित ऊँचे ध्‍वज तथा मयूर पिच्छ के ही बने हुए प्रकाशमान अंगद (भुजबन्द) से तुम प्रकाशित होओगी। भयंकर भूतगणों से घिरकर मेरी आज्ञा के अधीन रहती हुई तुम सदा कुमारी रहने का व्रत लेकर स्वर्गलोक को चली जाओगी।

वहाँ देवताओं सहित सहस्र नेत्रधारी इन्द्र मेरी आज्ञा के अनुसार सब कार्यों का सम्पादन करने के कारण (अथवा मेरी बतायी हुई पद्धति के अनुसार) तुम्हारा दिव्य विधि से अभिषेक करेंगे। वहीं इन्द्र अपनी बहिन बनाने के लिये तुम्हें सादर ग्रहण करेंगे। कुशिक के गोत्र से सम्बन्ध होने के कारण तुम ‘कौशिकी’ नाम से प्रसिद्ध होगी। वे देवराज इन्द्र पर्वतों में श्रेष्ठ विन्‍यगिरि तुम्हें श्वेत स्थान प्रदान करेंगे। तत्पश्चात तुम अपने सहस्रों स्थानों द्वारा सारी पृथ्वीे को सुशोभित करोगी। महाभागे! तुम इच्छानुसार रूप धारण करने वाली और वरदायिनी होकर तीनों लोकों में विचरोगी तथा तुमसे की हुई उपयाचना (मनौती) अवश्य सफल होगी। वहाँ मुझे मन में स्थान देकर तुम विन्य पर्वत पर विचरने वाले शुम्भ और निशुम्भी नामक दानवों को उनके अनुयायियों सहित नष्ट कर डालोगी। वहाँ तुम्हारे मधुयुक्त एवं मांस रहित बलि (उपहार-सामग्री) प्रिय होगी और सब लोग बार बार तुम्हारे तीर्थ की यात्रा करके नवमी तिथि को पशु पूजन कर्म के साथ तुम्हें पूजा देंगे, जिसे तुम प्रसन्नतापूर्वक ग्रहण करोगी। मेरे प्रभाव को जानने वाले जो मनुष्य तुम्हें प्रणाम करेंगे, उनके लिये पुत्र अथवा धन आदि कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं होगी। कोई दुर्गम स्थान में फँस जाय, महासागर में डूबने लगे अथवा लुटेरों या डाकुओं के द्वारा कैद कर लिये जाय, उन सभी संकटग्रस्त मनुष्यों के लिये तुम सबसे बड़ा सहारा होओगी। शुभे! जो लोग भक्तिपूर्वक इस (आगे बताये जाने वाले) स्तोेत्र से तुम्हारी स्तुति करेंगे, उनके लिये न तो मैं अदृश्य रहूँगा और न वे ही मेरी दृष्टि से ओझल रहेंगे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में पृथ्वी के भार को उतारने के प्रसंग में भगवान द्वारा निद्रा को कर्तव्य का ज्ञापनविषयक दूसरा अध्याय: पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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