हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 125 श्लोक 37-53

Prev.png

हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पंचविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 37-53 का हिन्दी अनुवाद

ये नारायण और महेश्वरदेव कर्ता और कारण के भी आदि कर्ता हैं तथा कर्ता और कारण से भी काम कराने वाले हैं। ये ही दोनों भूत, भविष्य और वर्तमान रूप हैं। ये ही जगत के पालक और ये ही इसकी सृष्टि करने वाले माने गये हैं। ये ब्रह्मा, विष्णु और शिव (मेघरूप से जल की) वर्षा करते हैं। (सूर्यरूप से) प्रकाशित होते हैं और (वायुरूप से) सर्वत्र गतिशील होते हैं। ये ही सृष्टि करते हैं। पितामह! यह मैंने आपसे परम गुह्य रहस्य का वर्णन किया है। जो प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ करता और जो इसे सुनता है, वह मनुष्य भगवान विष्णु और रुद्र की कृपा से परमपद को प्राप्त कर लेता है। मैं ब्रह्मा जी के साथ मिले हुए हरि और हर दोनों देवताओं की स्तुति करूँगा। ये ही दोनों परमदेव हैं और ये ही जगत की सृष्टि तथा संहार के कारण हैं। रुद्र के परमदेव विष्णु हैं और विष्णु के परमदेव शिव हैं। एक ही परमेश्वर दो रूपों में व्यक्त होकर सदा समस्त जगत में विचरते रहते हैं। भगवान शंकर के बिना विष्णु नहीं हैं और विष्णु के बिना शिव नही हैं। अत: वे दोनों रुद्र और विष्णु पूर्वकाल से ही एकत्व को प्राप्त हैं।

संयुक्त अथवा एकरूप होकर विचरने वाले भगवान रुद्र एवं श्रीकृष्ण को नमस्कार है। त्रिनेत्रधारी शिव को नमस्कार है, साथ ही द्विनेत्रधारी श्रीकृष्ण को नमस्कार हैं, पिंगलनेत्र वाले शिव को नमस्कार है और प्रफुल्ल कमल के समान नेत्र वाले श्रीकृष्ण को नमस्कार है। कुमार कार्तिकेय के पिता भगवान शिव को नमस्‍कार है, प्रद्युम्न के पिता भगवान श्रीकृष्ण को नमस्कार है, शेषरूप से पृथ्वी को धारण करने वाले श्रीहरि को प्रणाम है तथा सिर पर गंगा जी को धारण करने वाले शिव को नमस्कार है। मस्तक पर मोरपंख धारण करने वाले श्रीकृष्ण को नमस्कार है। सर्पों का वाजूबंद धारण करने वाले शिव को नमस्कार है। वनमालाधारी श्रीकृष्ण तथा कपालमालाधारी शिव को प्रणाम है। हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले श्रीशिव को नमस्कार है, एक हाथ में सुदर्शन चक्र धारण करने वाले श्रीहरि को नमस्कार है। सोने का दण्ड धारण करने वाले श्रीहरि को और ब्रह्मदण्डधारी शिव को नमस्कार है। वस्त्र की जगह व्याघ्रचर्म धारण करने वाले शिव को प्रणाम है।

पीताम्बरधारी श्रीकृष्ण को नमस्कार है, लक्ष्मीपति श्रीहरि को प्रणाम है और उमापति महादेवजी को नमस्कार है। खट्वांगधारी शिव को प्रणाम है और मुसलधारी बलभद्र स्वरूप श्रीहरि को नमस्कार है तथा श्यामसुन्दर शरीरधारी श्रीहरि को प्रणाम है। श्मशानवासी हर और समुद्र निवासी हरि को नमस्कार है। अनेक अवतार धारण करने वाले हरि और बहुत से रूप धारण करने वाले हर को नमस्कार है। प्रलयंकर रुद्र और त्रैलोक्यरक्षक विष्णु को नमस्कार है। सौम्यरूपधारी श्रीहरि और भैरव रूपधारी रुद्रदेव को नमस्कार है। विरूप नेत्र वाले महादेव जी तथा सौम्य दृष्टि वाले श्रीहरि को प्रणाम है। दक्षयज्ञ का ध्वंस करने वाले रुद्र तथा बलि को बाँधने वाले वामन रूपधारी श्रीहरि को नमस्कार है। पर्वत निवासी शिव और समुद्रवासी विष्णु को नमस्कार है। देवद्रोहियों का नाश करने वाले श्रीहरि को प्रणाम है, त्रिपुरासुर के विनाशक रुद्र देव को नमस्कार है, नरकासुर का विनाश करने वाले विष्णु को नमस्कार है और कामदेव के शरीर को दग्‍ध कर डालने वाले भगवान शिव को नमस्कार है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः