हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: नवाधिकशततम अध्याय: श्लोक 25-62 का हिन्दी अनुवाद
प्रभास, प्रयाग, नैमिष, पुष्कर, गंगातीर्थ, कुरुक्षेत्र, श्रीकण्इ, गौतमाश्रम, परशुरामकुण्ड, विनशनतीर्थ, रामतीर्थ, गंगाद्वार, कनखलतीर्थ, जहाँ सोम का उत्थान हुआ था वह सोमोत्थानतीर्थ, कपाल मोचनतीर्थ, सुविख्यात जम्बूमार्ग, सुवर्णविन्दु नाम से विख्यात तीर्थ, कनकपिंगल तीर्थ, पवित्र आश्रमों से विभूषित दशाश्वमेधिक तीर्थ, सुविख्यात बदरी तीर्थ, नर-नारायण का आश्रम, पुलगुतीर्थ, जिनका मैंने यहाँ कीर्तन किया हैं, निश्चय ही मुझे अपने जल से आप्लावित करें। सूकरतीर्थ, योगमार्ग, श्वेतद्वीप, ब्रह्मतीर्थ, सौ अश्वमेध यज्ञों के समान फल देने वाला रामतीर्थ, धारा के रूप में गिरती हुई गंगा, पापनाशिनी गंगा, वैकुण्ठकेदार, उत्तम सूकरोद्भेदनतीर्थ तथा सुप्रसिद्ध शापमोचनतीर्थ। ये सारे तीर्थ मुझे पाप से रहित एवं पवित्र करें। धर्म, अर्थ और कामविषयक शास्त्र, यश की प्राप्ति, शम, दम, वरुण, ईश, धनद, यम, नियम, काल, नय, संनति, क्रोध, मोह, क्षमा, धृति, विद्युत, मेघ, औषधियां, प्रमाद, उन्माद, विग्रह, यक्ष, पिशाच, गन्धर्व, किन्नर, सिद्ध, चारण,निशाचर, खेचर, बड़ी-बड़ी दाढ़ों वाले हिंसक जीव उन्हें विग्रह प्रिय हैं, बलवान लम्बोदर, पीले नेत्र वाले तथा विश्वरूपधारी गण, मरुदगण, मेघ, कला, त्रुटि, लव, क्षण, नक्षत्र, ग्रह, शिशिर आदि ऋतु, मास, दिन, रात, सूर्य, चन्द्रमा, आमोद, प्रमोद, प्रहर्ष, शोक, रज, तम, तप, सत्य, शुद्धि, बुद्धि, धृति, श्रुति, रुद्राणी, भद्रकाली, भद्रा, ज्येष्ठा, वारुणी, भासी, कालिका, शाण्डिली, आर्या, कुहू, सिनीवाली, भीमा, चित्ररथी, रति, एकानंशा, कूष्माण्डी, कात्यायनी देवी, लोहित्या, जनमाता, देवकन्याएं, गोनन्दा तथा देवपत्नी- ये बन्धु-बान्धवों सहित मेरी रक्षा करें। जो नाना प्रकार के आभूषण और वेष धारण करती हैं, जिनके मुख पर अनेक प्रकार के चित्र अंकित होते हैं, जो विभिन्न देशों में विचरने वाली तथा अनेक शस्त्रों से सुशोभित हैं, जिन्हें मेदा, मज्जा, मद्य, मांस और वसा प्रिय है, जिनके मुख बिल्ली, बाघ, हाथी, सिंह, कंक, कौआ, गीध अथवा क्रौन्च के समान हैं, जो सर्पमय यज्ञोपवीत धारण करने वाली तथा चर्मयम वस्त्र से अपने अंगों को ढकने वाली हैं, जिनके मुख रक्त से अभिषिक्त हैं तथा जिनकी वाणी नगाड़ों की प्रखर ध्वनि की भाँति गम्भीर है, जो ईर्ष्यालु और क्रोधी हैं, महल जिनके सुन्दर निवास हैं, जो मत्त, उन्मत्त और प्रमत्त रहकर प्रहार करती हुई घरों में स्थित रहती हैं, जिनके नेत्र और केश पिंगलवर्ण के दिखायी देते हैं, इनके अतिरिक्त जिनके केश कटे हुए हैं, जिनके सिर के बाल ऊपर की ओर उठे हैं, जो काले अथवा सफेद केश धारण करती हैं, जो छोटे कद की हैं, जिनमें दस हजार हाथियों के समान बल है तथा जो वायु के तुल्य वेग वाली हैं, जिनके एक पैर, एक हाथ और एक आँख हैं, जो देखने में पिंगल वर्ण की प्रतीत होती हैं, जो अधिक या थोड़े पुत्र वाली हैं, जिनके दो ही पुत्र हैं, जो पुत्रों का श्रृंगार करने वाली हैं, मुखमण्डी, बिडाली, पूतना, गन्धपूतना, शीतवातोष्णवेताली तथा रेवती आदि नामों से जिनकी प्रसिद्धि है, जिन्हें बालग्रह कहते हैं, जिन्हें हास्य और क्रोध प्रिय है, जो वस्त्र एवं वास स्थान से प्रेम करती हैं, सदा प्रिय वचन बोलती हैं, जो सुख और दु:ख भी देती हैं तथा जो द्विजातियों को सदा प्रिय हैं, जो रात में विचरने वाली तथा उपासक को भविष्य में सुख देने वाली हैं तथा जो पर्वकाल में सदा अपने दारुण स्वभाव का परिचय देती हैं, वे मातृकाएं मेरी प्रतिदिन रक्षा करें, जैसे माता अपने पुत्र की रक्षा करती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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