महाभारत आदि पर्व अध्याय 2 श्लोक 102-124

द्वितीय (2) अध्‍याय: आदि पर्व (पर्वसंग्रह पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 102-124 का हिन्दी अनुवाद


लाक्षागृहदाह पर्व में पाण्डवों की वारणावत-यात्रा के प्रसंग में दुर्योधन के गुप्त षड्यन्त्र का वर्णन है। उसका पाण्डवों के पास कूटनीतिज्ञ पुरोचन को भेजने का भी प्रसंग है। मार्ग में विदुर जी ने बुद्धिमान युधिष्ठिर के हित के लिए म्लेच्छभाषा में जो हितोपदेश किया, उसका भी वर्णन है। फिर विदुर की बात मानकर सुरंग खुदवाने का कार्य आरम्भ किया गया। उसी लाक्षागृह में अपने पाँच पुत्रों के साथ सोती हुई एक भीलनी और पुरोचन भी जल मरे। यह सब कथा कही गयी है। हिडिम्बवध पर्व में घोर वन के मार्ग से यात्रा करते समय पाण्डवों को हिडिम्बा के दर्शन, महाबली भीमसेन के द्वारा हिडिम्बासुर के वध तथा घटोत्कच के जन्म की कथा कही गयी है। अमिततेजस्वी महर्षि व्यास का पाण्डवों से मिलना और उनकी एकचक्रा नगरी में ब्राह्मण के घर पाण्डवों के गुप्त निवास का वर्णन है। वहीं रहते समय उन्होंने बकासुर का वध किया, जिससे नागरिकों को बड़ा भारी आश्रर्य हुआ। इसके अनन्तर कृष्णा द्रौपदी और उसके भाई धृष्टद्युम्न की उत्पत्ति का वर्णन है। जब पाण्डवों को ब्राह्मण के मुख से यह संवाद मिला, तब वे महर्षि व्यास की आज्ञा से द्रौपदी की प्राप्ति के लिये कौतूहलपूर्ण चित्त से स्वयंवर देखने पांचाल देश की ओर चल पड़े।

चैत्ररथ पर्व में गंगा के तट पर अर्जुन ने अंगारपर्ण गन्धर्व को जीतकर उससे मित्रता कर ली और उसी के मुख से तपती, वसिष्ठ और ओर्व के उत्तम आख्यान सुने। फिर अर्जुन ने वहाँ से अपने सभी भाईयों के साथ पांचाल नगर के बड़े-बड़े राजाओं से भरी सभा में लक्ष्य भेध करके द्रौपदी को प्राप्त किया। यह कथा भी इसी पर्व में है। वहीं भीमसेन और अर्जुन ने रणांगण में युद्ध के लिये संनद्ध क्रोधान्ध राजाओं तथा शल्य और कर्ण को भी अपने पराक्रम से पराजित कर दिया। महापति बलराम एवं भगवान श्रीकृष्ण ने जब भीमसेन एवं अर्जुन के अपरिमित और अतिमानुष बलवीर्य को देखा, तब उन्हे यह शंका हुई कि कहीं ये पाण्डव तो नहीं हैं। फिर वे दोनों उनसे मिलने के लिये कुम्हार के घर आये। इसके पश्चात द्रुपद ने ‘पाँचों पाण्डवों की एक ही पत्नी कैसे हो सकती है’ इस सम्बन्ध में विचार-विमर्श किया। इसी वैवाहिक-पर्व में पाँच इन्द्रों का अदभुत उपाख्यान और द्रौपदी के देव विहित तथा मनुष्य परम्परा के विपरीत विवाह का वर्णन हुआ है।

इस के बाद धृतराष्ट्र ने पाण्डवों के पास विदुर जी को भेजा है, विदुर जी पाण्डवों से मिले हैं तथा उन्हें श्रीकृष्ण दशर्न हुआ है। इसके पश्चात धृतराष्ट्र का पाण्डवों को आधा राज्य देना, इन्द्रप्रस्थ में पाण्डवों का निवास करना एवं नारद जी की आज्ञा से द्रौपदी के पास आने जाने के सम्बन्ध में समय निर्धारण आदि विषयों का वर्णन है। इसी प्रसंग में सुन्द और उपसुन्द के उपाख्यान का भी वर्णन है। तदनन्तर एक दिन धर्मराज युधिष्ठिर द्रौपदी के साथ बैठे हुए थे। अर्जुन ने ब्राह्मण के लिये नियम तोड़कर वहाँ प्रवेश किया और अपने आयुध लेकर ब्राह्मण की वस्तु उसे प्राप्त कर दी और दृढ़ निश्चय करके वीरता के साथ मर्यादा पालन के लिये वन में चले गये। इसी प्रसंग में यह कथा भी कही गयी है कि वनवास के अवसर पर मार्ग में ही अर्जुन और उलूपी का मेल-मिलाप हो गया। इसके बाद अर्जुन ने पवित्र तीर्थों की यात्रा की है। इसी समय चित्रांगदा के गर्भ से बभ्रुवाहन का जन्म हुआ है और इसी यात्रा में उन्होंने पाँच शुभ अप्सराओं को मुक्तिदान किया, जो एक तपस्वी ब्राह्मण के शाप से ग्राह हो गयी थी। फिर प्रभास तीर्थ में श्रीकृष्ण और अर्जुन के मिलन का वर्णन है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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