विंश (20) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)
महाभारत: स्त्री पर्व: विंश अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
(श्रीकृष्ण! अब उत्तरा अपने पति को संबोधित करके कहती है) प्रियतम! आपका शरीर तो अत्यन्त सुकुमार है। आप रंकुमृग के चर्म से बने हुए सुकोमल बिछौने पर सोया करते थे। क्या आज इस तरह पृथ्वी पर पड़े रहने से आपके शरीर को कष्ट नहीं होता है? जो हाथी की सूँड के समान बड़ी है, निरंतर प्रत्यंचा खींचने के कारण रगड़ से जिनकी त्वचा कठोर हो गयी है तथा जो सोने के बाजूबन्द धारण करते हैं उन विशाल भुजाओं को फैलाकर आप सो रहे हैं। निश्चय ही बहुत परिश्रम करके मानो थक जाने कारण आप सुख की नींद ले रहे हो। मैं इस तरह आर्त होकर विलाप करती हूँ किंतु आप मुझसे बोलते तक नहीं हैं। मैंने कोई अपराध किया हो, ऐसा तो मुझे स्मरण नहीं है, फिर क्या कारण कि आप मुझसे नहीं बोलते हैं। पहले तो आप मुझे दूर से भी देख लेने पर बोले बिना नहीं रहते थे। आर्य! आप माता सुभद्रा को, इन देवताओं के समान ताऊ, पिता और चाचाओं तथा मुझ दुखातुरा पत्नि को छोड़कर कहाँ जायँगे? जनार्दन! देखो, अभिमन्यु के सिर को गोदी में रखकर उत्तरा उसके खून से सने हुए केषों को हाथ से उठा-उठा कर सुलझाती है और मानो वह जी रहा हो, इस प्रकार उससे पूछती है। प्राणनाथ! आप वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण के भानजे और गाण्डीवधारी अर्जुन के पुत्र थे। रणभूमि के मध्य भाग में खड़े हुए आपको इन महारथियों ने कैसे मार डाला? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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