अष्टविंश (28) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: अष्टविंश अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद
भूपाल! तदनन्तर महासमर में सहस्रों बाजे बजने लगे और वहाँ किलकिलाहट की आवाज गूँज उठी। उस युद्ध में समसत पांचाल कौरवों के साथ भिड़ गये। पैदल पैदल के साथ, हाथी हाथियों के, रथी रथियों के और घुड़सवार घुड़सवारों के साथ युद्ध करने लगे। महाराज! उस रणभूमि में होने वाले नाना प्रकार के अचिन्तनीय, शस्त्रयुक्त तथा उत्तम द्वन्द्व युद्ध देखने ही योग्य थे। वे महान वेगशाली समस्त शूरवीर समरांगण में एक दूसरे के वध की इच्छा से विचित्र, शीघ्रता पूर्ण तथा सुन्दर रीति से युद्ध करने लगे। वे वीर योद्धा के व्रत का पालन करते हुए युद्ध स्थल में एक दूसरे को मारते थे। उन्होंने किसी तरह भी युद्ध में पीठ नहीं दिखाई। राजन! दो ही घड़ी तक वह युद्ध देखने में मधुर जान पड़ा। फिर तो वहाँ उन्मत्त के समान मर्यादाशून्य बर्ताव होने लगा। रथी हाथी का सामना करके झुकी हुई गाँठ वाले तीखे बाणों द्वारा उसे विदीर्ण करते हुए काल के गाल में भेजने लगे।। हाथी बहुत-से घोड़ों को पकड़ कर रणभूमि में इधर-उधर फेंकने और विदीर्ण करने लगे। उससे वहाँ उस समय बड़ा भयंकर दृश्य उपस्थित हो गया। बहुत से घुड़सवार उत्तम गजराजों को चारों ओर से घेरकर इधर-उधर दौड़ने और ताली पीटने लगे। इससे जब वे विशालकाय हाथी दौड़ने और भागने लगते, तब वे घुड़सवार अगल-बगल से और पीछे की ओर से उन पर बाणों की चोट करते थे। राजन! कितने ही मदोन्मत्त हाथी भी बहुत से घोड़ों का खदेड़कर उन्हें दाँतों से दबाकर मार डालते अथवा वेगपूर्वक पैरों से कुचल डालते थे। कितने ही हाथियों ने रोष में भरकर सवारों सहित घोड़ों को अपने दाँतों से विदीर्ण कर डाला तथा कुछ अत्यन्त बलवान गजराजों ने उन घोड़ों को पकड़कर वेगपूर्वक दूर फेंक दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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