षड्-विंश (26) अध्याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: षड्-विंश अध्याय: श्लोक 1-8 का हिन्दी अनुवाद
उग्रश्रवा जी कहते हैं- 'नागमाता कद्रू के इस प्रकार स्तुति करने पर भगवान इन्द्र ने मेघों की काली घटाओं द्वारा सम्पूर्ण आकाश को आच्छादित कर दिया। साथ ही मेघों को आज्ञा दी- तुम सब शीतल जल की वर्षा करो।’ आज्ञा पाकर बिजलियों से प्रकाशित होने वाले उन मेघों ने प्रचुर जल की वृष्टि की। वे परस्पर अत्यन्त गर्जना करते हुए आकाश से निरन्तर पानी बरसाते रहे। जोर-जोर से गर्जने और लगातार असीम जल की वर्षा करने वाले अत्यन्त अद्भुत जलधरों ने सारे आकाश को घेर- सा लिया था। असंख्य धारारूप लहरों से युक्त वह मानो नृत्य सा कर रहा था। भयंकर गर्जन-तर्जन करने वाले वे मेघ बिजली और वायु से प्रकम्पित हो उस समय निरन्तर मूसलाधार पानी गिरा रहे थे। उनके द्वारा आच्छादित आकाश में चन्द्रमा और सूर्य की किरणें भी अदृश्य हो गयी थीं। इन्द्र देव के इस प्रकार वर्षा करने पर नागों को बड़ा हर्ष हुआ। पृथ्वी पर सब ओर पानी ही पानी भर गया। वह शीतल और निर्मल जल रसातल तक पहुँच गया। उस समय सारा भूतल जल की असंख्य तरंगों से आच्छादित हो गया था। इस प्रकार वर्षा में संतुष्ट हुए सर्प अपनी माता के साथ रमणीय द्वीप में आ गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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