एकाशीतितम (81) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: एकाशीतितम अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद
सातवें दिन के युद्ध में कौरव-पाण्डव-सेनाओं का मण्डल और वज्रव्यूह बनाकर भीषण संघर्ष
ऐसा कहकर भीष्म जी ने दुर्योधन को विशल्यकरणी नामक शुभ एवं शक्तिशालिनी औषधि प्रदान की। उस समय उसके प्रभाव से दुर्योधन के शरीर में धँसे हुए बाण आसानी से निकल गये और वह आघातजनित घाव तथा उसकी पीड़ा से मुक्त हो गया। तदनन्तर निर्मल प्रभात की बेला में व्यूनविशारद नरश्रेष्ठ बलवान् भीष्म ने अपनी सेना के द्वारा स्वयं ही मण्डल नामक व्यूह का निर्माण किया, जो नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सम्पन्न था। वह व्यूह हाथी और पैदल आदि मुख्य-मुख्य योद्धाओं से भरा हुआ था। कई सहस्र रथों ने उसे सब ओर से घेर रखा था। वह व्यूह ऋष्टि और तोमर धारण करने वाले अश्वारोहियों के महान् समुदायों से भरा था। एक-एक हाथी के पीछे सात-सात रथ, एक-एक रथ के साथ सात-सात घुड़सवार, प्रत्येक घुड़सवार के पीछे दस-दस धनुर्धर और प्रत्येक धनुर्धर के साथ दस-दस ढाल-तलवार लिये रहने वाले वीर खड़े थे। महाराज! इस प्रकार महारथियों के द्वारा व्यूहबद्ध होकर आपकी सेना महायुद्ध के लिये खड़ी थी और भीष्म युद्धस्थल में उसकी रक्षा करते थे। उसमें दस हजार घोड़े, उतने ही हाथी और दस हजार रथ तथा आपके चित्रसेन आदि शूरवीर पुत्र कवच धारण करके पितामह भीष्म की रक्षा कर रहे थे। उन वीरों से भीष्म सुरक्षित थे और भीष्म से उन शूरवीरों की रक्षा हो रही थी। वहाँ बहुत से महाबली नरेश कवच बाँधकर युद्ध के लिये तैयार दिखायी देते थे। शोभासम्पन्न राजा दुर्योधन भी युद्धस्थल में कवच बाँधकर रथ पर आरूढ़ हो ऐसा सुशोभित हो रहा था, मानो देवराज इन्द्र स्वर्ग में अपनी दिव्य प्रभा से प्रकाशित हो रहे हों। भारत! तदनन्तर आपके पुत्रों का महान् सिंहनाद सुनायी देने लगा, साथ ही रथों और वाद्यों का गम्भीर घोष गूँज उठा। भीष्म ने युद्धस्थल में कौरव सैनिकों का पश्चिमाभिमुख व्यूह बनाया था। वह मण्डल नामक महाव्यूह दुर्भेद्य होने के साथ ही शत्रुओं का संहार करने वाला था। राजन्! उस रणभूमि में सब ओर उस व्यूह की बड़ी शोभा हो रही थी। वह शत्रुओं के लिये सर्वथा दुर्गम था। कौरवों के परम दुर्जय मण्डलव्यूह को देखकर राजा युधिष्ठिर ने स्वयं अपनी सेना के लिये वज्रव्यूह का निर्माण किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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