त्रयसिंत्रशदधिकशततम (133) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: त्रयसिंत्रशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-9 का हिन्दी अनुवाद
(ऋषि, मुनि, देवता और पितरों से) महेश्वर बोले- तुम लोगों ने धर्मशास्त्र का सार निकालकर उत्तम धर्म का वर्णन किया है। अब सब लोग मुझसे धर्म सम्बन्धी इस गूढ़ रहस्य का वर्णन सुनो। जिनकी बुद्धि सदा धर्म में ही लगी रहती है और जो मनुष्य परम श्रद्धालु हैं, उन्हीं को इस महान फलदायक रहस्ययुक्त धर्म का उपदेश देना चाहिये। जो उद्वेगरहित होकर एक मास तक प्रतिदिन गौ को भोजन देता है और स्वयं एक ही समय खाता है, उसे जो फल मिलता है, उसका वर्णन सुनो। ये गौएँ परम सौभाग्यशालिनी और अत्यन्त पवित्र मानी गयी हैं। ये देवता, असुर और मनुष्यों सहित तीनों लोकों को धारण करती हैं। इनकी सेवा करने से बहुत बड़ा पुण्य और महान फल प्राप्त होता है। प्रतिदिन गौओं को भोजन देने वाला मनुष्य नित्य महान धर्म का उपार्जन करता है। मैंने पहले सतयुग में गौओं को अपने पास रहने की आज्ञा दी थी। पद्मयोनि ब्रह्मा जी ने इसके लिये मुझसे बहुत अनुनय-विनय की थी। इसलिये मेरी गौओं के झुंड में रहने वाला वृषभ मुझसे ऊपर मेरे रथ की ध्वजा में विद्यमान है। मैं सदा गौओं के साथ रहने में ही आनन्द का अनुभव करता हूँ। अतः उन गौओं की सदा ही पूजा करनी चाहिये। गौओं का प्रभाव बहुत बड़ा है। वे वरदायिनी हैं। इसलिये उपासना करने पर अभीष्ट वर देती हैं। उसे सम्पूर्ण कर्मों में जो फल अभीष्ट होता है, उसके लिये वे गौएँ अनुमोदन करती-उसकी सिद्धि के लिये वरदान देती हैं। जो पूर्वोक्त रूप से गौ को नित्य भोजन देता है, उसे सदा की जाने वाली गोसेवा के फल का एक चौथाई पुण्य प्राप्त होता है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अंतर्गत दानधर्म पर्व में महादेव जी का धर्म सम्बंधी रहस्य विषयक एक सौ तैंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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