महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 109 श्लोक 1-17

नवाधिकशततम (109) अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: नवाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


प्रत्‍येक मास की द्वादशी तिथि को उपवास और भगवान विष्‍णु की पूजा करने का विशेष माहात्‍म्‍य

युधिष्ठिर ने कहा- पितामह! समस्त उपवासों में जो सबसे श्रेष्ठ और महान फल देने वाला है तथा जिसके विषय में लोगों को कोई संशय नहीं है, वह आप मुझे बताइये।

भीष्म जी ने कहा- राजन! स्वयंभू भगवान विष्णु ने इस विषय में जैसा कहा है, उसे बताता हूँ, सुनो। उसका अनुष्ठान करके मनुष्य परम सुखी हो जाता है, इसमें संशय नहीं है। मार्गशीर्ष मास में द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके भगवान केशव की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पा लेता है और उसका सारा पाप नष्ट हो जाता है। इसी प्रकार पौष मास में द्वादशी तिथि को उपवासपूर्वक भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिये। ऐसा करने वाले पुरुष को वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है और वह परम सिद्धि को प्राप्त हो जाता है। माघ मास की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके भगवान माधव की पूजा करने से उपासक को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है और वह अपने कुल का उद्धार कर देता है। इसी तरह फाल्गुन मास की द्वादशी तिथि को उपवासपूर्वक गोविन्द नाम से भगवान की पूजा करने वाला पुरुष अतिरात्र यज्ञ का फल पाता है और मृत्यु के पश्चात सोमलोक में जाता है। चैत्र मास की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके विष्णु नाम से भगवान का चिंतन करने वाला मनुष्य पौण्डरीक यज्ञ का फल पाता है और देवलोक में जाता है।

वैशाख मास की द्वादशी तिथि को उपवासपूर्वक भगवान मधुसूदन का पूजन करने वाला पुरुष अग्निष्टोम यज्ञ का फल पाता है और सामलोक में जाता है। ज्येष्ठ मास की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके जो भगवान त्रिविक्रम की पूजा करता है, वह गोमेध यज्ञ का फल पाता और अप्सराओं के साथ आनन्द भोगता है। आषाढ़ मास की द्वादशी तिथि को उपवासपूर्वक वामन नाम से भगवान का पूजन करने वाला पुरुष नरमेध यज्ञ का फल पाता है और महान पुण्य का भागी होता है। श्रावण मास की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके जो भगवान श्रीधर की आराधना करता है, वह पंच महायज्ञों का फल पाता और विमान पर बैठकर सुख भोगता है। भाद्रपद मास की द्वादशी तिथि को उपवासपूर्वक हृषिकेश नाम से भगवान की पूजा करने वाला मनुष्य सौत्रामणि यज्ञ का फल पाता और पवित्रात्मा होता है।

आश्विन मास की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके पद्मनाम नाम से भगवान की पूजा करने वाला पुरुष सहस्र गोदान का पुण्यफल पाता है, इसमें संशय नहीं है। कार्तिक मास की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके भगवान दामोदर की पूजा करने से स्त्री हो या पुरुष गोयज्ञ का फल पाता है, इसमें संशय नहीं है।

इस प्रकार जो एक वर्ष तक कमलनयन भगवान विष्णु का पूजन करता है, वह पूर्वजन्म की बातों का स्मरण करने वाला होता है और उसे बहुत-सी सुवर्ण राशि प्राप्त होती है। जो प्रतिदिन इसी प्रकार भगवान विष्णु की पूजा करता है, वह विष्णुभाव को प्राप्त होता है। यह व्रत समाप्त होने पर ब्राह्मण को भोजन करावे अथवा घृत दान करे। इस उपवास से बढ़कर दूसरा कोई उपवास नहीं है, इसे निश्चय समझना चाहिये। साक्षात भगवान विष्णु ने ही इस पुरातन व्रत के विषय में बताया है।


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अंतर्गत दानधर्म पर्व में भगवान विष्णु का द्वादशी व्रत नामक एक सौ नवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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