महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 20 श्लोक 1-17

विंश (20) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: विंश अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


द्रुपद के पुरोहित का कौरव सभा में भाषण

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर द्रुपद के पुरोहित कौरव नरेश के पास पहुँचकर राजा धृतराष्ट्र, भीष्म तथा विदुर जी द्वारा सम्मानित हुए। उन्होंने [1] सारा कुशल समाचार बताकर धृतराष्ट्र, आदि के स्वास्थ्य का समाचार पूछा, फिर सम्पूर्ण सेनानायकों के समक्ष इस प्रकार कहा। 'आप सब लोग सनातन राजधर्म को अच्छी तरह जानते हैं। जानने पर भी स्वयं इसलिये कुछ कह रहा हूँ कि अन्त में कुछ आप लोगों के मुख से भी सुनने का अवसर मिले। राजा धृतराष्ट्र तथा पाण्डु दोनों एक ही पिता के सुविख्यात पुत्र हैं। पैतृक सम्पत्ति में दोनों का समान अधिकार है, इसमें तनिक भी संशय नहीं है। धृतराष्ट्र के जो पुत्र हैं, उन्होंने तो पैतृक धन प्राप्त कर लिया, परंतु पाण्डवों को वह पैतृक सम्पत्ति क्यों न प्राप्त हो। 'धृतराष्ट्र ने सारा धन अपने अधिकार में कर लिया; इसलिये पाण्डु पुत्रों को पैतृक धन नहीं मिला है, यह बात आप लोग पहले से ही जानते हैं। 'उसके बाद दुर्योधन आदि धृतराष्ट्र-पुत्रों ने प्राणान्तकारी उपायों द्वारा अनेक बार पाण्डवों को नष्ट करने का प्रयत्न किया; परंतु इनकी आयु शेष थी, इसलिये वे इन्हें यमलोक न पहुँचा सके। 'फिर महात्मा पाण्डवों ने अपने बाहुबल से नूतन राज्य की प्रतिष्ठा करके उसे बढ़ा लिया; परंतु शकुनि सहित क्षुद्र-धृतराष्ट्र पुत्रों ने जूए में छल कपट का आश्रय ले उसका हरण कर लिया।

तत्पश्चात धृतराष्ट्र ने भी उस द्यूतकर्म का अनुमोदन किया और उन्होंने जैसा आदेश दिया, उसके अनुसार पाण्डव महान वन में तेरह वर्षों तक निवास करने के लिये विवश हुए। 'पत्नी सहित वीर पाण्डवों को कौरव सभा में भारी क्लेश पहुँचाया गया तथा वन में भी उन्हें नाना प्रकार के भयंकर कष्ट भोगने पड़े। 'इतना ही नही, दूसरी योनि में पड़े हुए पापियों की तरह विराट नगर में भी इन महात्माओं को महान क्लेश सहन करना पड़ा है। ‘पहले के किये हुए इन सब अत्याचारों को भुलाकर वे कुरुश्रेष्ठ पाण्डव अब भी इन कौरवों के साथ मेल-जोल ही रखना चाहते हैं। ‘पाण्डवों के आचार व्यवहार को तथा दुर्योधन के बर्ताव को जानकर [2] सुहृदों का यह कर्तव्य है कि वे दुर्योधन को समझावें। वीर पाण्डव कौरवों के साथ युद्ध नही कर रहे हैं, वे जनसंहार किये बिना ही अपना राज्य पाना चाहते हैं। दुर्योधन जिस हेतु को सामने रखकर युद्ध के लिये उत्सुक हैं, उसे यथार्थ नहीं मानना चाहिये क्योंकि पाण्डव इन कौरवों से अधिक बलिष्ठ हैं। धर्मपुत्र युधिष्ठिर के पास सात अक्षौहिणी सेनाएँ भी एकत्र हो गयी हैं, जो कौरवों के साथ युद्ध की अभिलाषा रखकर उनके आदेश की प्रतीक्षा कर रही हैं। ‘इसके सिवा सात्यकि, भीमसेन तथा महाबलशाली नकुल-सहदेव आदि जो दूसरे पुरुष सिंह वीर हैं, वे अकेले हजार अक्षौहिणी सेनाओं के समान हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पहले अपने पक्ष के लोगों का
  2. उभय पक्ष का हित चाहने वाले

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