महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 183 श्लोक 1-19

त्र्यशीत्यधिकशततम (183) अध्‍याय: उद्योग पर्व (अम्बोपाख्‍यान पर्व)

Prev.png

महाभारत: उद्योग पर्व: त्र्यशीत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

भीष्‍म को अष्‍टवसुओं से प्रस्वापनास्त्र की प्राप्ति

  • भीष्‍मजी कहते हैं- राजेन्द्र! तदनन्तर मैं रात के समय एकान्त में शय्यापर जाकर ब्राह्मणों, पितरों, देवताओं, निशाचरों, भूतों तथा रा‍जर्षियों को मस्तक झुकाकर प्रणाम करने के पश्‍चात मन-ही-मन इस प्रकार चिन्ता करने लगा। (1-2)
  • आज बहुत दिन हो गये, जमदग्निनन्दन परशुरामजी के साथ यह मेरा अत्यन्त भयंकर और महान अनिष्‍टकारक युद्ध चल रहा है। (3)
  • परंतु मैं महाबली, महापराक्रमी विप्रवर परशुरामजी को समरभूमि में युद्ध के मुहाने पर किसी तरह जीत नहीं सकता। (4)
  • यदि प्रतापी जमदग्निकुमार को जीतना मेरे लिये सम्भव हो तो प्रसन्न हुए देवगण रात्रि में मुझे दर्शन दें। (5)
  • राजेन्द्र! ऐसी प्रार्थना करके बाणों से क्षत-विक्षत हुआ मैं रात्रि के अन्त में प्रभात के समय दाहिनी करवट से सो गया। महाराज! कुरुश्रेठ! तत्पश्‍चात जिन ब्राह्मण शिरोमणियों ने रथ से गिरने पर मुझे थाम लिया और उठाया था तथा ‘डरो मत’ ऐसा कहकर सान्त्वना दी थी, उन्हीं लोगों ने मुझे सपने-में दर्शन देकर मेरे चारों ओर खडे़ होकर जो बातें कही थीं, उसे बताता हुं, सुनो। (6-8)
  • ‘गंगानन्दन! उठो। भयभीत न होओ। तुम्हें कोई भय नहीं है। कुरुनन्दन! हम तुम्हारी रक्षा करतें हैं, क्योंकि तुम हमारे ही स्वरूप हो। (9)
  • ‘जमदग्निकुमार परशुराम तुम्हें किसी प्रकार युद्ध में जीत नहीं सकेंगे। भरतभूषण! तुम्हीं रणक्षेत्र में परशुराम पर विजय पाओगे। (10)
  • ‘भारत! यह प्रस्ताव नामक अस्त्र है, जिसके देवता प्रजापति हैं। विश्वकर्मा ने इसका अविष्‍कार किया है। यह तुम्हें भी परम प्रिय है। इसकी प्रयोग विधि तुम्हें स्वत: ज्ञात हो जायगी; क्योंकि पूर्व शरीर में तुम्हें भी इसका पूर्ण ज्ञान था। परशुरामजी भी इस अस्त्र को नहीं जानते हैं। इस पृथ्‍वी पर कहीं किसी भी पुरुष को इसका ज्ञान नहीं हैं। (11-12)
  • ‘महाबाहो! इस अस्त्र का स्मरण करो और विशेषरूप से इसी का प्रयोग करो। निष्‍पाप राजेन्द्र! यह अस्त्र स्वयं ही तुम्हारी सेवा में उपस्थित हो जायगा। (13)
  • ‘कुरुनन्दन! उसके प्रभाव से तुम सम्पूर्ण महापराक्रमी नरेशों पर शासन करोगे। राजन! उस अस्त्र से परशुराम का नाश नहीं होगा। (14)
  • ‘इसलिये मानद! तुम्हें कभी इसके द्वारा पाप से संयोग नहीं होगा। तुम्हारे अस्त्र के प्रभाव से पीड़ित होकर जमदग्निकुमार परशुराम चुपचाप सो जायंगे। (15)
  • भीष्‍म! तदनन्तर अपने उस प्रिय अस्त्र के द्वारा युद्ध में विजयी होकर तुम्हीं उन्हें सम्बोधनास्त्र द्वारा पुन: जगाकर उठाओगे। (16)
  • ‘कुरुनन्दन! प्रात:काल रथ पर बैठकर तुम ऐसा ही करो; क्योंकि हम लोग सोये अथवा मरे हुए को समान ही समझते हैं। (17)
  • ‘राजन! परशुराम की कभी मृत्यु नहीं हो सकती; अत: इस प्राप्त हुए प्रस्ताव नामक अस्त्र का प्रयोग करो।' (18)
  • राजन! ऐसा कहकर वे वसुस्वरूप सभी श्रेष्‍ठ ब्राह्मण अदृश्‍य हो गये। वे आठों समान रूपवाले थे। उन सबके शरीर तेजोमय प्रतीत होते थे। (19)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्तर्गत अम्बोपाख्‍यानपर्व में भीष्‍म को प्रस्वापनास्त्र की प्राप्तिविषयक एक सौ तिरासीवां अध्‍याय पूरा हुआ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः