महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 92 श्लोक 1-15

द्विनवतितम (92) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: द्विनवतितम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद


कौरवों का शोक, भीम आदि पाण्डवों का हर्ष, कौरव-सेना का पलायन और दुःखित शल्य का दुर्योधन को सात्वना देना


संजय कहते हैं- राजन! कर्ण और अर्जुन के संग्राम में बाणों द्वारा सारी सेनाएँ रौंद डाली गयी थीं और अधिरथ पुत्र कर्ण पैदल होकर मारा गया था। यह सब देखकर राजा शल्य, जिसका आवरण एवं अन्य सारी सामग्री नष्ट कर दी गयी थी, कौरव-सेना के रथ, घोडे़ और हाथी मार डाले गये थे। सूतपुत्र का भी वध कर दिया गया था। उस अवस्था में उस सेना को देखकर दुर्योधन की आँखों में आँसू भर आये और वह बारंबार लंबी साँस खींचता हुआ दीन एवं दुखी हो गया। शूरवीर कर्ण पृथ्वी पर पड़ा हुआ था। उसके शरीर में बहुत-से बाण व्याप्त हो रहे थे तथा सारा अंग खून से लथपथ हो रहा था। उस अवस्था में दैवेच्छा से पृथ्वी पर उतरे हुए सूर्य के समान उसे देखने के लिये सब लोग उसकी लाश को घेरकर खडे़ हो गये। कोई प्रसन्न था तो कोई भयभीत। कोई विषादग्रस्त था तो कोई आश्चर्यचकित तथा दूसरे बहुत-से लोग शोक से मृतप्राय हो रहे थे। आपके और शत्रुपक्ष के सैनिकों में से जिसकी जैसी प्रकृति थी, वे परस्पर उसी भाव में मग्न थे। जिसके कवच, आभूषण, वस्त्र और अस्त्र-शस्त्र छिन्न-भिन्न होकर पड़े थे, उस महाबली कर्ण को अर्जुन द्वारा मारा गया देख कौरव सैनिक निर्जन वन में साँड़ के मारे जाने पर भागने वाली गायों के समान इधर-उधर भाग चले।

कर्ण के मारे जाने पर धृतराष्ट्र पुत्रों को भयभीत करते हुए भीमसेन भयंकर स्वर से सिंहनाद करके आकाश और पृथ्वी को कँपाने तथा ताल ठोंककर नाचने-कूदने लगे। राजन! इसी प्रकार समस्त सोमक और सृंजय भी शंख बजाने और एक दूसरे को छाती से लगाने लगे। सूतपुत्र के मारे जाने पर उस समय पाण्डव दल के सभी क्षत्रिय परस्पर हर्षमग्‍न हो रहे थे। जैसे सिंह हाथी को पछाड़ देता है, उसी प्रकार पुरुषप्रवर अर्जुन ने बड़ी भारी मार-काट मचाकर कर्ण का वध किया, अपनी प्रतिज्ञा पूरी की और उन्होंने वैर का अंत कर दिया।

राजन! जिसकी ध्वजा काट दी गयी थी, उस रथ के द्वारा मद्रराज शल्य भी विमुढ़चित्त होकर तुरन्त दुर्योधन के पास गये और दुःख से आँसू बहाते हुए इस प्रकार बोले-नरेश्वर! तुम्हारी सेना के हाथी, घोडे़, रथ और प्रमुख वीर नष्ट-भ्रष्ट हो गये। सारी सेना में यमराज का राज्य-सा हो गया है। पर्वत शिखरों के समान विशाल हाथी, घोडे़ और पैदल मनुष्य एक दूसरे से टक्कर लेकर अपने प्राण खो बैठे हैं। भारत! आज कर्ण और अर्जुन में जैसा युद्ध हुआ है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था। कर्ण ने धावा करके श्रीकृष्ण, अर्जुन तथा तुम्हारे अन्य सब शत्रुओं को भी प्रायः प्राणों के संकट में डाल दिया था; परन्तु कोई फल नहीं निकला। निश्चय ही दैव कुन्तीपुत्र के अधीन होकर काम कर रहा है, क्योंकि वह पाण्डवों की तो रक्षा करता है और हमारा विनाश। यही कारण है कि तुम्हारे अर्थ की सिद्धि के लिये प्रयत्न करने वाले प्रायः सभी वीर शत्रुओं के हाथ से बलपूर्वक मारे गये।

राजन! तुम्हारी सेना के श्रेष्ठ वीर कुबेर, यम और इन्द्र के समान प्रभावशाली तथा बल, पराक्रम, शौर्य, तेज एवं अन्य नाना प्रकार के गुणसमुहों से सम्पन्न थे। जो-जो राजा तुम्हारे स्वार्थ की सिद्धि चाहने वाले और अवध्य के समान थे, उन सबको पाण्डवों ने युद्ध में मार डाला। अतः भारत! तुम शोक न करो। यह सब आरम्भ का खेल है। सबको सदा ही सिद्धि नहीं मिलती, ऐसा जानकर धैर्य धारण करो। मद्रराज शल्य की ये बातें सुनकर और अपने अन्याय पर भी मन-ही-मन दृष्टि डालकर दुर्योधन बहुत उदास एवं दुःखी हो गया। वह अत्यन्त पीड़ित और अचेत-सा होकर बारंबार लंबी उसाँसें भरने लगा।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में शल्य का युद्ध से प्रत्यागमनविषयक बानवेवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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