सप्ततितम (70) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: सप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद
संजय कहते हैं- भरतश्रेष्ठ! उस समरभूमि में तीखे बाणों से गिराये जाने वाले मस्तकों की वर्षा होने लगी, मानो आकाश से पत्थरों की वृष्टि हो रही है। भरतवंशी नरेश, कुण्डल और पगड़ी धारण करने वाले तथा स्वर्णमय मुकुट आदि से उद्भासित होने वाले अगणित मस्तक कटकर धरती पर पड़े दिखायी देते थे। सारी पृथ्वी बाणों से छिन्न-भिन्न हुई लाशों, धनुष तथा हस्ताभरणों सहित कटी हुई दोनों भुजाओं से पट गयी थी। भूपाल! दो ही घड़ी में वहाँ की सारी वसुधा कवच से ढके हुए शरीरों, आभूषणों से विभूषित हाथों, चन्द्रमा के समान सुन्दर मुखों, जिनके अन्तभाग में कुछ-कुछ लाली थी, ऐसे सुन्दर नेत्रों तथा हाथी, घोड़े और मनुष्यों के सम्पूर्ण अंगों से बिछ गयी थी। धूल के भयंकर बादल छा रहे थे। उनमें अस्त्र-शस्त्र रूपी विद्युत के प्रकाश देखे जाते थे। धनुष आदि आयुधों का जो गम्भीर घोष होता था, वह मेघ-गर्जना के समान प्रतीत होता था। भारत! कौरवों और पाण्डवों का वह भयानक युद्ध बड़ा ही कटु और रक्त को पानी की तरह बहाने वाला था। उस महान् भयदायक, घोर, रोमांचकारी एवं तुमुल संग्राम में रणदुर्मद क्षत्रिय बाणों की वर्षा करने लगे। भरतश्रेष्ठ! बाणों की वर्षा से पीड़ित हुए आपके और पाण्डवों के हाथी उस युद्ध में चिग्घाड़ मचा रहे थे। क्रोधावेश में भरे हुए अमित तेजस्वी धीर-वीरों के धनुषों की टंकार से वहाँ कुछ भी सुनायी नहीं पड़ता थी। चारों ओर केवल कबन्ध (बिना सिर के शरीर) खड़े थे। रक्त का प्रवाह पानी के समान बह रहा था। शत्रुओं का वध करने के लिये उद्यत हुए नरेशगण समर भूमि में चारों ओर दौड़ लगा रहे थे। परिघ के समान मोटी भुजाओं वाले अमित तेजस्वी शूरवीर योद्धा बाण, शक्ति और गदाओं द्वारा रणक्षेत्र में एक दूसरे को मार रहे थे। जिनके सवार मारे गये थे, वे अंकुशरहित गजराज बाणविद्ध होकर वहाँ इधर-उधर चक्कर काट रहे थे। सवारों के मारे जाने से घोड़े भी शराघात से पीड़ित हो चारों ओर दौड़ लगा रहे थे। भरतश्रेष्ठ! आपके और शत्रुपक्ष के कितने ही योद्धा बाणों के गहरे आघात से अत्यन्त पीड़ा हो उछल कर गिर पड़ते थे। भारत! भीष्म और भीम के उस संग्राम में मरे हुए वाहनों, कटे हुए मस्तकों, धनुषों, गदाओं, परिघों, हाथों, जाँघों, पैरों, आभूषणों तथा बाजूबन्द आदि के ढेर-के-ढेर दिखायी दे रहे थे। प्रजानाथ! उस युद्धस्थल में जहाँ-तहाँ घोड़ों, हाथियों तथा युद्ध से पीछे न हटने वाले रथों के समूह दृष्टिगोचर हो रहे थे। क्षत्रियगण गदा, खड्ग, प्रास तथा झुकी हुई गाँठ वाले बाणों द्वारा एक दूसरे को मार रहे थे, क्योंकि उन सबका काल आ गया था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज