महाभारत शल्य पर्व अध्याय 64 श्लोक 1-21

चतुःषष्टितम (64) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

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महाभारत: शल्य पर्व:चतुःषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद


दुर्योधन का संजय के सम्मुख विलाप और वाहकों द्वारा अपने साथियों को संदेश भेजना


धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय! जब जाँघें टूट जाने के कारण मेरा पुत्र पृथ्वी पर गिर पड़ा और भीमसेन ने उसके मस्तक पर पैर रख दिया, तब उसने क्या कहा? उसे अपने बल पर बड़ा अभिमान था। राजा दुर्योधन अत्यन्त क्रोधी तथा पाण्डवों से वैर रखने वाला था। उस युद्ध भूमि में जब वह बड़ी भारी विपत्ति में फँस गया, तब क्या बोला?

संजय ने कहा- राजन! सुनिये। नरेश्वर! उस भारी संकट में पड़ जाने पर टूटी जाँघ वाले राजा दुर्योधन ने जो कुछ कहा था वह सब वृतान्त यथार्थ रूप से बता रहा हूँ। राजन! जब कौरव-नरेश की जाँघें टूट गयीं, तब वह धरती पर गिरकर धूल में सन गया। फिर बिखरे हुए बालों को समेटता हुआ वहाँ दसों दिशाओं की ओर देखने लगा। बड़े प्रयत्न से अपने बालों को बाँधकर सर्प के समान फुफकारते हुए उसने रोष और आँसुओं से भरे हुए नेत्रों द्वारा मेरी ओर देखा। इसके बाद दोनों भुजाओं को पृथ्वी पर रगड़कर मदोन्मत गजराज के समान अपने बिखरे केशों को हिलाता, दाँतों से दाँतों को पीसता तथा ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर की निन्दा करता हुआ, वह उच्छ्वास ले इस प्रकार बोला-

शान्तनुनन्दन भीष्म, अस्त्रधारियों में श्रेष्ठ कर्ण, कृपाचार्य, शकुनि, अस्त्रधारियों में सर्वश्रेष्ठ द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, शूरवीर शल्य तथा कृतवर्मा मेरे रक्षक थे तो भी मैं इस दशा को आ पहुँचा। निश्चय ही काल का उल्लंघन करना किसी के लिये भी अत्यन्त कठिन है। महाबाहो! मैं एक दिन ग्यारह अक्षौहिणी सेना का स्वामी था; परंतु आज इस दशा में आ पड़ा हूँ। वास्तव में काल को पाकर कोई उसका उल्लंघन नहीं कर सकता। मेरे पक्ष के वीरों में से जो लोग इस युद्ध में जीवित बच गये हों, उन्हें यह बताना कि भीमसेन ने किस तरह गदायुद्ध के नियम का उल्लंघन करके मुझे मारा। पाण्डवों ने भूरिश्रवा, कर्ण, भीष्म तथा श्रीमान द्रोणाचार्य के प्रति बहुत से नृशंस कार्य किये हैं। उन क्रूरकर्मा पाण्डवों ने यह भी अपनी अकीर्ति फैलाने वाला कर्म ही किया है, जिससे वे साधु पुरुषों की सभी में पश्चात्ताप ही करेंगे; ऐसा मेरा विश्वास है। छल से विजय पाकर किसी सत्त्वगुणी या शक्तिशाली पुरुष को क्या प्रसन्नता होगी? अथवा जो युद्ध के नियम को भंग कर देता है, उसका सम्मान कौन विद्वान कर सकता है? अधर्म से विजय प्राप्त करके किस बुद्धिमान पुरुष को हर्ष होगा? जैसा कि पापी पाण्डु पुत्र भीमसेन को हो रहा है।

आज जब मेरी जाँघें टूट गयी हैं; ऐसी दशा में कुपित हुए भीमसेन ने मेरे मस्तक को जो पैर से ठुकराया है, इससे बढ़कर आश्चर्य की बात और क्या हो सकती है? संजय! जो अपने तेज से तप रहा हो, राजलक्ष्मी से सेवित हो और अपने सहायक बन्धुओं के बीच में विद्यमान हो, ऐसे शत्रु के साथ जो उक्त बर्ताव करे, वही वीर पुरुष सम्मानित होता है (मरे हुए को मारने में क्या बड़ाई है)। मेरे माता-पिता युद्ध धर्म के ज्ञाता है। वे दोनों मेरी मृत्यु का समाचार सुनकर दुःख से आतुर हो जायेंगे। तुम मेरे कहने से उन्हें यह संदेश देना कि मैंने यज्ञ किये, जो भरण-पोषण करने योग्य थे, उनका पालन किया और समुद्रपर्यन्त पृथ्वी का अच्छी तरह शासन किया। संजय! मैंने जीवित शत्रुओं के ही मस्तक पर पैर रखा। यथाशक्ति धन का दान और मित्रों का प्रिय किया। साथ ही सम्पूर्ण शत्रुओं को सदा ही क्लेश पहुँचाया। संसार में कौन ऐसा पुरुष है, जिसका अन्त मेरे समान सुन्दर हुआ हो। मैंने सभी बन्धु-बान्धवों को सम्मान दिया। अपनी आज्ञा के अधीन रहने वाले लोगों का सत्कार किया और धर्म, अर्थ एवं काम सबका सेवन कर लिया। मेरे समान सुन्दर अन्त किसका हुआ होगा? बड़े-बड़े राजाओं पर हुक्म चलाया, अत्यन्त दुर्लभ सम्मान प्राप्त किया तथा आजानेय (अरबी) घोड़ों पर सवारी की, मुझसे अच्छा अन्त और किसका हुआ होगा?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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