सप्तदश (17) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: सप्तदश अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद
कुन्तीकुमार अर्जुन ने उत्तम रीति से छोड़े गये बाणों द्वारा युद्ध में पीठ न दिखाकर सामने खड़े हुए शत्रुओं के धनुष, बाण, तरकस, प्रत्यंचा, हाथ, भुजा, हाथ में रखे हुए शस्त्र, छत्र, अश्व, रथ, ईषादण्ड, वस्त्र, माला, आभूषण, ढाल, सुन्दर कवच, समस्त प्रिय वस्तु तथा मस्तक-इन सबको काट डाला। सुन्दर सजे-सजाये रथ, घोड़े और हाथी खड़े थे और उन पर प्रयत्नपूर्वक युद्ध करने वाले नरवीर बैठे थे; परंतु अर्जुन के चलाये हुए सैंकड़ों बाणों से घायल हो वे सारे वाहन उन नरवीरों के साथ ही धराशायी हो गये। जिनके मुख कमल, सूर्य और पूर्ण चन्द्रमा के समान सुन्दर, तेजस्वी एवं मनोरम थे तथा मुकुट, माला एवं आभूषणों से प्रकाशित हो रहे थे, ऐसे असंख्य नरमुण्ड भल्ल, अर्द्धचन्द्र तथा क्षरनामक बाणों से कट-कट कर लगातार पृथ्वी पर गिर रहे थे। तत्पश्चात कलिंग, अंग, वंग और निषाद देशों के वीर देवराज इन्द्र के ऐरावत हाथी के समान विशाल गजराजों पर सवार हो, देव द्रोहियों का दर्प दलन करने वाले प्रचण्ड वीर पाण्डुकुमार अर्जुन पर उन्हें मार डालने की इच्छा से चढ़ आये। कुन्तीकुमार अर्जुन ने उनके हाथी के कवच, चर्म, सूँड, महावत, ध्वजा और पताका-सबको काट डाला। इससे वे वज्र के मारे हुए पर्वतीय शिखरों के समान पृथ्वी पर गिर पड़े। उनके नष्ट हो जाने पर किरीटधारी अर्जुन ने प्रभातकाल के सूर्य की कान्ति के समान तेजस्वी बाणों द्वारा गुरुपुत्र अश्वत्थामा को ढक दिया, मानो वायु ने उगते हुए किरणों वाले सूर्य को मेघों की बड़ी घटाओं से आच्छादित कर दिया हो। तब द्रोणकुमार अश्वत्थामा ने अपने तीखे बाणों द्वारा अर्जुन के बाणों का निवारण करके श्रीकृष्ण और अर्जुन को ढक दिया और आकाश में चन्द्रमा तथा सूर्य को आच्छादित करके गर्जने वाले वर्षा काल के मेघ की भाँति वह गम्भीर गर्जना करने लगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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