पंचनवतितम (95) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: पंचनवतितम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
जिसके भाई नष्ट हो गये थे और सर्वस्व लुट गया था, वह राजा दुर्योधन भी शोकमग्न, उदास और विशेष चिन्तित होकर शिविर की ओर चल पड़ा। रथियों में श्रेष्ठ राजा शल्य ने भी जिसकी ध्वजा कट गयी थी, उस रथ के द्वारा दसों दिशाओं की ओर देखते हुए छावनी की ओर भी प्रस्थान किया। भरतवंशियों के दूसरे-दूसरे बहुसंख्यक महारथी भी भयभीत, लज्जित और अचेत होकर शिविर की ओर दौडे़। कर्ण को मारा गया देख सभी कौरव-सैनिक खून बहाते और काँपते हुए उद्विग्न तथा आतुर होकर छावनी की ओर भागने लगे। आपके उन हजारों योद्धाओं में वहाँ कोई भी ऐसा पुरुष नहीं था, जो अपने मन में उस महासमर में युद्ध के लिये उत्साह रखता हो। महाराज! कर्ण के मारे जाने पर कौरव अपने राज्य से, धन से, स्त्रियों से और जीवन से भी निराश हो गये। दुःख और शोक में डूबे हुए आपके पुत्र राजा दुर्योधन ने बड़े यत्न से उन सबको साथ ले आकर छावनी में विश्राम करने का विचार किया। प्रजानाथ! वे सब महारथी योद्धा दुर्योधन की आज्ञा शिरोधार्य करके शिविर में प्रविष्ट हुए। उन सबके मुखों की कांति फीकी पड़ गयी थी। इस प्रकार महाभारत कर्णपर्व में कौरव-सेना का शिविर की ओर प्रस्थान विषयक पंचानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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