महाभारत स्‍वर्गारोहण पर्व अध्याय 3 श्लोक 1-20

तृतीय (3) अध्‍याय: स्‍वर्गारोहण पर्व

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महाभारत स्‍वर्गारोहण पर्व तृतीय अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


इन्द्र और धर्म का युधिष्ठिर को सान्त्वना देना तथा युधिष्ठिर का शरीर त्यागकर दिव्य लोक को जाना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! कुन्तीकुमार धर्मराज युधिष्ठिर को उस स्‍थान पर खड़े हुए अभी दो ही घड़ी बीतने पायी थी कि इन्द्र आदि सम्पूर्ण देवता वहाँ आ पहुँचे। साक्षात धर्म भी शरीर धारण करके राजा से मिलने के लिये उस स्‍थान पर आये, जहाँ वे कुरुराज युधिष्ठिर विद्यमान थे। राजन! जिनके कुल और कर्म पवित्र हैं, उन तेजस्‍वी शरीर वाले देवताओं के आते ही वहाँ का सारा अन्धकार दूर हो गया। वहाँ पापकर्मी पुरुषों को जो यातनाएँ दी जाती थीं, वे सहसा अदृश्‍य हो गयीं। न वैतरणी नदी रह गयी, न कूटशाल्‍मलि वृक्ष। लोहे के कुम्भ और लोहमयी भयंकर तप्‍त शिलाएँ भी नहीं दिखायी देती थीं। कुरुकुलनन्दन राजा युधिष्ठिर ने वहाँ चारों ओर जो विकृत शरीर देखे थे, वे सभी अदृश्‍य हो गये। तदनन्तर वहाँ पावन सुगन्ध लेकर बहने वाली पवित्र सुख‍दायिनी वायु चलने लगी। भारत! देवताओं के समीप बहती हुई वह वायु अत्‍यन्त शीतल प्रतीत होती थी।

इन्द्र के साथ मरुद्गण, वसुगण, दोनों अश्विनीकुमार, साध्यगण, रुद्रगण, आदित्यगण, अन्यान्य देवतालोकवासी सिद्ध और महर्षि सभी उस स्‍थान पर आये, जहाँ महातेजस्‍वी धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर खड़े थे। तदनन्तर उत्तम शोभा से सम्पन्न देवराज इन्द्र ने युधिष्ठिर को सान्त्‍वना देते हुए इस प्रकार कहा- "महाबाहु युधिष्ठिर! तुम्हें अक्षय लोक प्राप्‍त हुए हैं। पुरुषसिंह! प्रभो! अब तक जो हुआ सो हुआ। अब अधिक कष्ट उठाने की आवश्‍यकता नहीं है। आओ हमारे साथ चलो। महाबाहो! तुम्हें बहुत बड़ी सिद्धि मिली है; साथ ही अक्षय लोकों की भी प्राप्ति हुई है।

तात! तुम्हें जो नरक देखना पड़ा है, इसके लिये क्रोध न करना। मेरी यह बात सुनो। समस्‍त राजाओं को निश्चय ही नरक देखना पड़ता है। पुरुषप्रवर! मनुष्य के जीवन में शुभ और अशुभ कर्मों की दो राशियाँ सञ्चित होती हैं। जो पहले ही शुभ कर्म भोग लेता है, उसे पीछे नरक में ही जाना पड़ता है। परंतु जो पहले नरक भोग लेता है, वह पीछे स्‍वर्ग में जाता है। जिसके पास पाप कर्मों का संग्रह अधिक है, वह पहले ही स्‍वर्ग भोग लेता है। नरेश्वर! मैंने तुम्हारे कल्‍याण की इच्‍छा से तुम्हें पहले ही इस प्रकार नरक का दर्शन कराने के लिये यहाँ भेज दिया है। राजन! तुमने गुरुपुत्र अश्वत्थामा के विषय में छल से काम लेकर द्रोणाचार्य को उनके पुत्र की मृत्‍यु का विश्वास दिलाया था, इसलिये तुम्हें भी छल से ही नरक दिखलाया गया है। जैसे तुम यहाँ लाये गये थे, उसी प्रकार भीमसेन, अर्जुन, नकुल, सहदेव तथा द्रुपदकुमारी कृष्णा- ये सभी छल से नरक के निकट लाये गये। पुरुषसिंह! आओ, वे सभी पाप से मुक्‍त हो गये हैं।

भरतश्रेष्ठ! तुम्हारे पक्ष के जो-जो राजा युद्ध में मारे गये हैं, वे सभी स्‍वर्ग लोक में आ पहुँचे हैं। चलो, उनका दर्शन करो। तुम जिनके लिये सदा संतप्‍त रहते हो, वे सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ महाधनुर्धर कर्ण भी परम सिद्धि को प्राप्‍त हुए हैं। प्रभो! नरश्रेष्ठ! महाबाहो! तुम पुरुषसिंह सूर्यकुमार कर्ण का दर्शन करो। वे अपने स्‍थान में स्थित हैं। तुम उनके लिये शोक त्‍याग दो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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