महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 49 श्लोक 1-20

एकोनपंचाशत्तम (49) अध्याय: कर्ण पर्व

Prev.png

महाभारत: कर्ण पर्व: एकोनपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


कर्ण और युधिष्ठिर का संग्राम, कर्णकी मूर्छा, कर्णद्वारा युधिष्ठिर की पराजय और तिरस्कार तथा पाण्डवों के हजारों योद्धाओं का वध और रक्त-नदी का वणर्न तथा पाण्डव महारथियों द्वारा कौरव-सेना का विध्वंस और उसका पलायन


संजय कहते हैं- राजन! सहस्रों रथ, हाथी, घोड़े और पैदलों से घिरे हुए कर्ण ने उस सेना को विदीर्ण करके युधिष्ठिर धावा किया। हजारों अस्त्र-शस्त्रों को काटकर उन सबको सैकड़ों उग्र बाणों द्वारा बिना किसी घबराहट के बींध डाला। सूतपुत्र ने पाण्डव सैनिकों के मस्तकों, भुजाओं और जांघों को काट डाला। वे मरकर पृथ्वी पर गिर पड़े और दूसरे बहुत से योद्धा घायल होकर भाग गये। तब सात्यकि से प्रेरित द्रविड और निषाद देशों के पैदल सैनिक कर्ण को युद्ध में मार डालने की इच्छा से पुन: उस पर टूट पड़े। पंरतु कर्ण के बाणों से घायल होकर बाहु, मस्तक और कवच आदि से रहित हो वे कटे हुए शालवन के समान एक साथ ही पृथ्वी पर गिर पड़े। इस प्रकार युद्धस्थल में मारे गये सैकड़ों, हजार और दस हजार योद्धा शरीर से तो इस पृथ्वी पर गिर पड़े, किंतु अपने यश से उन्होंने सम्पूर्ण दिशाओं को पूर्ण कर दिया। तदनन्तर रणक्षेत्र में कुपित हुए यमराज के समान वैकर्तन कर्ण को पाण्डवों और पांचालों ने अपने बाणों द्वारा उसी प्रकार रोक दिया, जैसे चिकित्सक मन्त्रों और औषधों से रोगों की रोक थाम कर लेते हैं। परंतु मन्त्र और औषधियों की क्रिया से असाध्यं भयानक रोग की भाँति कर्ण ने उन सबको रौंदकर पुन: युधिष्ठिर पर ही आक्रमण किया। राजा की रक्षा चाहने वाले पाण्डवों, पांचालों और केकयों ने पुन: कर्ण को रोक दिया। जैसे मृत्यु ब्रह्मवेत्ताओं को नहीं लांघ सकती, उसी प्रकार कर्ण उन सबको लांघकर आगे न बढ़ सका।

उस समय युधिष्ठिर ने क्रोध से लाल आंखें करके शत्रुवीरों का संहार करने वाले कर्ण से, जो पास ही रोक दिया गया था, इस प्रकार कहा। ‘कर्ण! कर्ण! मिथ्यादर्शी सूतपुत्र! मेरी बात सुनो। तुम संग्राम में वेगशाली वीर अर्जुन के साथ सदा डाह रखते और दुर्योधन के मत में रहकर सर्वदा हमें बाधा पहुँचाते हो। ‘परंतु आज तुम्हारे पास जितना बल हो, जो पराक्रम हो तथा पाण्डवों के प्रति तुम्हारे मन में जो विद्वेष हो, वह सब महान पुरुषार्थ का आश्रय लेकर दिखाओ। आज महासमर में मैं तुम्हारा युद्ध का हौसला मिटा दूंगा।

महाराज! ऐसा कहकर पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर ने लोहे के बने हुए सुवर्ण पंखयुक्त दस बाणों द्वारा कर्ण को बींध डाला। भारत। तब शत्रुओं का दमन करने वाले महाधनुर्धर सूतपुत्र ने हंसते हुए से वत्सं दन्त नामक दस बाणों द्वारा युधिष्ठिर को घायल कर दिया। माननीय नरेश! सुतपुत्र के द्वारा अवज्ञापूर्वक घायल किये जाने पर फिर राजा युधिष्ठिर घी की आहुति से प्रज्वलित हुई अग्नि के समान क्रोध से जल उठे। ज्वालामालाओं से घिरा हुआ युधिष्ठिर का शरीर प्रलय काल में जगत को दग्ध करने की इच्छावाले द्वितीय संवर्तक अग्नि के समान दिखायी देता था। तदनन्तर उन्होंने अपने सुवर्णभूषित विशाल धनुष को फैला‍कर उस पर पर्वतों को भी विदीर्ण कर देनेवाले तीखे बाण का संधान किया। तत्पश्चात राजा युधिष्ठिर ने सूतपुत्र को मार डालने की इच्छा से तुरंत ही धनुष को पूर्णरुप से खींचकर वह यमदण्डि के समान बाण उसके ऊपर छोड़ दिया। वेगवान युधिष्ठिर का छोड़ा हुआ व्रज और बिजली के समान शब्द करने वाला वह बाण सहसा महारथी कर्ण की बायीं पसली में घुस गया।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः