महाभारत विराट पर्व अध्याय 56 श्लोक 1-12

षट्पंचाशत्तम (56) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: षट्पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन और कृपाचार्य का युद्ध देखने के लिये देवताओं का आकाश में विमानों पर आगमन

वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय! तदनन्तर भयंकर धनुष धारण करने वाले कौरवों के वे सैनिक शनैः शनैः आगे बढ़ने लगे। उस समय वे ऐसे दिखायी दे रहे थे, मानो ग्रीष्म के अन्त एवं वर्षा के प्रारम्भ में मनद वायु द्वारा प्रेरित मेघ धीरे धीरे आ रहे हों। घुड़सवार योद्धा समीप आकर खड़े हो गये। घोड़ों के साथ ही भयंकर हाथी भी आगे बढ़ आये। उन्हें महावत तोमर और अंकुशों की मार से आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहे थे औश्र उन हाथियों पर बैठे हुए शूर वीर अपने विचित्र कवचों की प्रभा से प्रकाशित हो रहे थे। राजन्! इसी समय देवताओं सहित इन्द्र विमान पर बैइकर विश्वेदेव, अश्विनीकुमार तथा मरुद्गणों के साथ वहाँ आये, जहाँ परस्पर शत्रुता रखने वाले दो दलों का भयंकर संघर्ष दिड़ा हुआ था। उस समय देवता, यक्ष, गन्धर्व तथा बड़े बड़े नागों ( के विमानों ) से भरा हुआ वहाँ का आकाश बादलों के आवरण से रहित ग्रह मण्डल की भाँति शोभा पाने लगा। कृपाचार्य और अर्जुन के संग्राम में देवताओं के उन अस्त्रों की शक्ति का मनुष्यों पर प्रयोग करने वाले शूरवीरों के उस महा भयंकर युद्ध को अपनी आँखों से देखने के लिये देवता लोग पृथक् पृथक् अपने विमानों पर बैठकर आये थे।

उन विमानों में देवराज इन्द्र का आकाशचारी विमान उस समय सबसे अधिक शोभा पा रहा था। वह इच्छानुसार चलने वाला दिव्य यान सब प्रकार के रत्नों से विभूषित था। उस विमान को एक करोड़ खंभों ने धारण कर रक्खा था। उनमें एक ओर सोने के और दूसरी ओर मणि एवं रत्नों के खंभे लगे थे। उस विमान में इन्द्र सहित तैंतीस देवता विराजमान थे। इनके सिवा गन्धर्व, राक्षस, सर्प, पितर, महर्षिगण, राजा, बसुमना, बलाक्ष, सुप्रतर्दन, अष्टक, शिबि, ययाति, नहुष, गय, मनु, पूरू, रघु, भानु, कृशाश्व, सगर, तथा नल - ये सब तेजस्वी रूप धारण करके देवराज के विमान में दृष्टिगोचर हो रहे थे। अग्नि, ईश, सोम, नरुण, प्रजापति, धाता, विधाता कुबेर, यम, अलम्बुष और उग्रसेन पृथक् पृथक् विमान अपनी - अपनी लंबाई चैड़ाई के अनुसार आकाश के विभिन्न प्रदेशों में प्रकाशित हो रहे थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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