महाभारत शल्य पर्व अध्याय 47 श्लोक 1-20

सप्तचत्वारिंश (47) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

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महाभारत: शल्य पर्व: सप्तचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


वरुण का अभिषेक तथा अग्नि तीर्थ, ब्रह्मयोनि और कुबेर तीर्थ की उत्पत्ति का प्रसंग


जनमेजय ने कहा- ब्रह्मन! आज मैंने आपके मुख से कुमार के विधिपूर्वक अभिषेक का यह अद्भुत वृत्तान्त यथार्थ रूप से और विस्तारपूर्वक सुना है। तपोधन! उसे सुनकर मैं अपने आपको पवित्र हुआ समझता हूँ। हर्ष से मेरे रोयें खड़े हो गये हैं और मेरा मन प्रसन्नता से भर गया है। कुमार के अभिषेक और उनके द्वारा दैत्यों के वध का वृत्तान्त सुनकर मुझे बड़ा आनन्द प्राप्त हुआ है और पुनः मेरे मन में इस विषय को सुनने की उत्कण्ठा जाग्रत हो गयी है। साधुशिरोमणे! महाप्राज्ञ! इस तीर्थ में देवताओं ने पहले जल के स्वामी वरुण का अभिषेक किस प्रकार किया था, यह सब मुझे बताइये; क्योंकि आप प्रवचन करने में कुशल हैं।

वैशम्पायन जी ने कहा- राजन! इस विचित्र प्रसंग को यथार्थ रूप से सुनो। पूर्वकल्प की बात है, जब आदि कृतयुग चल रहा था, उस समय सम्पूर्ण देवताओं ने वरुण के पास जाकर इस प्रकार कहा- ‘जैसे देवराज इन्द्र सदा भय से हम लोगों की रक्षा करते हैं, उसी प्रकार आप भी समस्त सरिताओं के अधिपति हो जाइये (और हमारी रक्षा कीजिये)। देव! मकरालय समुद्र में आपका सदा निवास स्थान होगा और यह नदीपति समुद्र सदा आपके वश में रहेगा। चन्द्रमा के साथ आपकी भी हानि और वृद्धि होगी’। तब वरुण ने उन देवताओं से कहा- ‘एवमस्तु’। इस प्रकार उनकी अनुमति पाकर सब देवता इकट्ठे होकर उन्होंने समुद्र निवासी वरुण को शास्त्रीय विधि के अनुसार जल का राजा बना दिया। जलजन्तुओं के स्वामी जलेश्वर वरुण का अभिषेक और पूजन करके सम्पूर्ण देवता अपने-अपने स्थान को ही चले गये। देवताओं द्वारा अभिषिक्त होकर महायशस्वी वरुण देवगणों की रक्षा करने वाले इन्द्र के समान सरिताओं, सागरों, नदों और सरोवरों का भी विधिपूर्वक पालन करने लगे।

प्रलम्बासुर का वध करने वाले महाज्ञानी बलराम जी उस तीर्थ में स्नान और भाँति-भाँति के धन का दान करके अग्नि तीर्थ में गये। निष्पाप नरेश! जब शमी के गर्भ में छिप जाने के कारण कहीं अग्नि देव का दर्शन नहीं हो रहा था और सम्पूर्ण जगत के प्रकाश अथवा दृष्टि शक्ति के विनाश की घड़ी उपस्थित हो गयी, तब सब देवता सर्वलोक पितामह ब्रह्मा जी की सेवा में उपस्थित हुए और बोले- ‘प्रभो! भगवान अग्नि देव अदृश्य हो गये हैं। इसका क्या कारण है, यह हमारी समझ में नहीं आता। सम्पूर्ण भूतों का विनाश न हो जाय, इसके लिये अग्नि देव को प्रकट कीजिये’। जनमेजय ने पूछा- ब्रह्मन! लोक भावन भगवान अग्नि क्यों अदृश्य हो गये थे और देवताओं ने कैसे उनका पता लगाया? यह यथार्थ रूप से बताइये। वैशम्पायन जी ने कहा- राजन! एक समय की बात है कि प्रतापी भगवान अग्नि देव महर्षि भृगु के शाप से अत्यन्त भयभीत हो शमी के भीतर जाकर अदृश्य हो गये। उस समय अग्नि देव के दिखायी न देने पर इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवता बहुत दुखी हो उनकी खोज करने लगे। तत्पश्चात अग्नि तीर्थ में आकर देवताओं ने अग्नि को शमी के गर्भ में विधिपूर्वक निवास करते देखा। नरव्याघ्र! इन्द्र सहित सब देवता बृहस्पति को आगे करके अग्नि देव के समीप आये और उन्हें देखकर बड़े प्रसन्न हुए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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