महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 19 श्लोक 1-18

एकोनविंश (19) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: एकोनविंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन के द्वारा संशप्तक-सेना का संहार, श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धस्थ्सल का दृश्य दिखाते हुए उनके पराक्रम की प्रशंसा करना तथा पाण्ड्य नरेश का कौरव सेना के साथ युद्धारम्भ


संजय कहते हैं- राजन! जैसे मंगल नामक ग्रह वक्र और अतिचार गति से चलकर लोक के लिए अनिष्टकारी होता है, उसी प्रकार विजयशील अर्जुन ने दण्डधार की सेना से पुनः लौटकर बहुत से संशप्तकों का संहार आरम्भ कर दिया। भरतवंशी नरेश! अर्जुन के बाणों से आहत हो हाथी, घोड़े, रथ और पैदल मनुष्य विचलित, भ्रान्त, पतित, मलिन तथा नष्ट होने लगे। पाण्डुननदन अर्जुन ने भल्ल, क्षुर, अर्धचन्द्र और वत्सदन्त नामक अस्त्रों द्वारा समरांगण में सामना करने वाले विपक्षी वीरों के रथों में जुते हुए धुरंधर अश्वों, सारथियों, ध्वजों, धनुषों, सासकों, तलवारों, हाथों, हाथ में रखे हुए शस्त्रों,भुजाओं तथा मस्तकों को भी काट डाला। जैसे मैथुन की वासना वाली गाय के लिए युद्ध की इच्छा से बहुतेरे साँड किसी एक साँड पर टूट पड़ते हों, उसी प्रकार सैंकड़ों और हजारों शूरवीर अर्जुन पर धावा बोलने लगे। उन योद्धाओं तथा अर्जुन का वह युद्ध वैसी ही रोमान्चकारी था, जैसा कि त्रैलोक्य-विजय के समय वज्रधारी इन्द्र के साथ दैत्यों का हुआ था।

उस समय उग्रायुध के पुत्र ने अत्यन्त डँस लेने के स्वभाव वाले सर्पों के समान तीन बाणों द्वारा अर्जुन को बींध डाला। तब अर्जुन ने उसके सिर को धड़ से उतार लिया। वे संशप्तक योद्धा कुपित हो अर्जुन पर सब ओर से नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा करने लगे, मानो वर्षाकाल में पवन प्रेरित मेघ हिमालय पर जल की वृष्टि कर रहे हों। अर्जुन ने अपने अस्त्रों द्वारा शत्रुओं के अस्त्रों का सब ओर से निवारण करके अच्छी तरह चलाये हुए बाणों द्वारा समस्त विपक्षियों में से बहुतों को मार डाला। अर्जुन ने उस समय अपने बाणों द्वारा शत्रु के रथों की बड़ी बुरी दशा कर डाली। उनके त्रिवेणु समूह काट डाले, घोड़ों और पाश्व रक्षकों को मार डाला। उन योद्धाओं के हाथों से खिसककर तूणीर गिर गये तथा उनके रथों के पहिये और ध्वज भी नष्ट हो गये। घोड़ों की बागडोर, जोत और रथ के धुरे भी काट डाले गये। उनके अनुकर्ष और जूए भी चैपट हो गये थे। वे बहुमूल्य और बहुसंख्यक रथ, जो वहाँ टूट-फूटकर गिरे पड़े थे, आग, हवा और पानी से नष्ट हुए धनवानों के घरों के समान जान पड़ते थे। वज्र और बिजली के समान तेजस्वी बाणों से कवच विदीर्ण हो जाने के कारण हाथी वज्र, वायु तथा आग से नष्ट हुए पर्वत-शिखरों पर बने हुए ग्रहों के समान गिर पड़ते थे। अर्जुन के मारे हुए बहुसंख्यक घोड़े और घुड़सवार पृथ्वी पर क्षत-विक्षत होकर पड़े थे। उनकी जीभ तथा आँतें बाहर निकल आयी थीं। वे खून से लथपथ हो रहे थे। उनकी ओर देखना अत्यन्त कठिन हो गया था।

मान्यवर! सव्यसाची अर्जुन के नाराचों से गुथे हुए हाथी, घोड़े और मनुष्य चक्कर काटते, लड़खड़ाते, गिरते, चिल्लाते और मन मारकर रह जाते थे। जैसे देवराज इन्द्र दानवों का संहार करते हैं, उसी प्रकार कुन्तीकुमार अर्जुन ने शिला पर तेज किये हुए वज्र, अशनि तथा विष के तुल्य अनेक भयंकर बाणों द्वारा उन संशप्तक वीरों का वध कर डाला। अर्जुन द्वारा मारे गये संशप्तक वीर बहुमूल्य कवच, आभूषण, भाँति-भाँति के वस्त्र, आयुध, रथ और ध्वजों सहित रणभूमि में सो रहे थे। वे पुण्यात्मा, उत्तम कुल में उत्पन्न तथा विशिष्ट शास्त्र ज्ञान से सम्पन्न वीर पराजित होकर अपने शरीरों से तो पृथ्वी पर गिरे, परन्तु प्रबल उत्तम कर्मों के द्वारा स्वर्गलोक में जा पहुँचे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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