महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 26 श्लोक 1-18

पंचविंश (25) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: षड्-विंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

भीमसेन का भगदत्त के हाथी के साथ युद्ध, हाथी और भगदत्‍त का भयानक पराक्रम

  • धृतराष्‍ट्र ने पूछा– संजय! इस प्रकार जब सैनिक पृथक-पृथक युद्ध के लिये लौटे और कौरव-योद्धा आगे बढ़कर सामना करने के लिये उद्यत हुए, उस समय मेरे तथा कुन्‍ती के वेगशाली पुत्रों ने आपस में किस प्रकार युद्ध किया? संशप्‍तकों की सेना पर चढ़ाई करके अर्जुन ने क्‍या किया? अथवा संशप्‍तकों ने अर्जुन का क्‍या कर लिया? (1-2)
  • संजय ने कहा– राजन! इस प्रकार जब पांडव-सैनिक पृथक-पृथक युद्ध के लिये लौटे और कौरव-योद्धा आगे बढ़कर सामना करने के लिये उद्यत हुए, उस समय आपके पुत्र दुर्योधन ने हाथियों की सेना साथ लेकर स्‍वयं ही भीमसेन पर आक्रमण किया। (3)
  • जैसे हाथी से हाथी और साँड से साँड़ भिड़ जाता है, उसी प्रकार राजा दुर्योधन के ललकारने पर भीमसेन स्‍वयं ही हाथियों की सेना पर टूट पड़े। (4)
  • आदरणीय नरेश! कुन्‍तीकुमार भीमसेन युद्ध में कुशल तथा बाहुबल से सम्‍पन्‍न हैं। उन्‍होंने थोड़ी ही देर में हाथियों की उस सेना को विदीर्ण कर डाला। (5)
  • वे पर्वत के समान विशालकाय हाथी सब ओर मद की धारा बहा रहे थे; परंतु भीमसेन के नाराचों से विद्ध होने पर उनका सारा मद उतर गया। वे युद्ध में विमुख होकर भाग चले। (6)
  • जैसे जोर से उठी हुई वायु मेघों की घटा को छिन्‍न-भिन्‍न कर डालती है, उसी प्रकार पवनपुत्र भीमसेन ने उन समस्‍त गज सेनाओं को तहस-नहस कर डाला। (7)
  • जैसे उदित हुए सूर्य समस्‍त भुवनों में अपनी किरणों का विस्‍तार करते हैं, उसी प्रकार भीमसेन उन हाथियों पर बाणों की वर्षा करते हुए शोभा पा रहे थे। (8)
  • वे भीम के बाणों से मारे जाकर परस्‍पर सटे हुए हाथी आकाश में सूर्य की किरणों से गुँथे हुए नाना प्रकार के मेघों की भाँति शोभा पा रहे थे। (9)
  • इस प्रकार गज-सेना का संहार करते हुए पवनपुत्र भीमसेन के पास आकर क्रोध में भरे हुए दुर्योधन ने उन्‍हें अपने पैने बाणों से बींध डाला। (10)
  • यह देख भीमसेन की आँखें खून के समान लाल हो गयीं। उन्‍होंने क्षणभर में राजा दुर्योधन का नाश करने की इच्‍छा से पंख युक्‍त पैने बाणों द्वारा उसे बींध डाला। (11)
  • दुर्योधन के सारे अंग बाणों से व्‍याप्‍त हो गये थे। अत: उसने कुपित होकर सूर्य की किरणों के समान तेजस्‍वी नाराचों द्वारा पाण्‍डुनन्‍दन भीमसेन को मुसकराते हुए-से घायलकर दिया। (12)
  • राजन! उसके रत्‍न निर्मित विचित्र ध्वज के ऊपर मणिमय नाग विराजमान था। उसे पाण्‍डुनन्‍दन भीम ने शीघ्र ही दो भल्‍लों से काट गिराया और धनुष के भी टुकड़े-टुकड़े कर दिये। (13)
  • आर्य! भीमसेन के द्वारा दुर्योधन को पीड़ित होते देख क्षोभ में डालने की इच्‍छा से मतवाले हाथी पर बैठे हुए राजा अंग उनका सामना करने के लिये आ गये। (14)
  • वह गजराज मेघ के समान गर्जना करने वाला था। उसे अपनी ओर आते देख भीमसेन ने उसके कुम्‍भ स्‍थल में नाराचों द्वारा बड़ी चोट पहुँचायी। (15)
  • भीमसेन का नाराच उस हाथी के शरीर को विदीर्ण करके धरती में समा गया, इससे वह गजराज वज्र के मारे हुए पर्वत की भाँति पृथ्‍वी पर गिर पड़ा। (16)
  • वह म्‍लेच्‍छजातीय अंग हाथी से अलग नहीं हुआ था। उस हाथी के साथ-साथ वह नीचे गिरना ही चाहता था कि शीघ्रकारी भीमसेन एक भल्‍ल के द्वारा उसका सिर काट दिया। (17)
  • उस वीर के धराशायी होते ही उसकी वह सारी सेना भागने लगी। घोड़े, हाथी तथा रथ सभी घबराहट में पड़कर इधर-उधर चक्‍कर काटने लगे। वह सेना अपने ही पैदल सिपाहियों को रौंदती हुई भाग रही थी। (18)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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