महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 3 श्लोक 1-17

तृतीय (3) अध्याय: भीष्म पर्व (जम्बूखण्‍डविनिर्माण पर्व)

Prev.png

महाभारत: भीष्म पर्व: तृतीय अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
व्यासजी के द्वारा अमंगलसूचक उत्पातों तथा विजय सूचक लक्षणों का वर्णन
  • व्यासजी ने कहा- राजन! गायों के गर्भ से गदहे पैदा होते हैं, पुत्र माताओं के साथ रमण करते हैं। वन के वृक्ष बिना ॠतु के फूल और फल प्रकट करते हैं। (1)
  • गर्भवती स्त्रियां पुत्र को जन्म न देकर अपने गर्भ से भयंकर जीवों को पैदा करती हैं। मासंभक्षी पशु भी पक्षियों के साथ परस्पर मिलकर एक ही जगह आहार ग्रहण करते हैं। (2)
  • तीन सींग, चार नेत्र, पांच पैर, दो मूत्रेन्द्रिय, दो मस्तक, दो पूंछ और अनेक दांढो़ वाले अमंगलमय पशु जन्म लेते तथा मुंह फैलाकर अमंगल सूचक वाणी बोलते हैं। (3)
  • गरुड़ पक्षी के मस्तक पर शिखा और सींग हैं। उनके तीन पैर तथा चार दाढे़ दिखायी देती हैं। इसी प्रकार अन्य जीव भी देखे जाते हैं। वेदवादी ब्राह्मणों की स्त्रियां तुम्हारे नगर में गरुड़ और मोर पैदा करती हैं। (4-5)
  • भूपाल! घोड़ी गाय के बछेडे़ को जन्म देती हैं, कुतिया के पेट से सियार पैदा होता है, हाथी कुत्तों को जन्म देते हैं और तोते भी अशुभसूचक बोली बोलने लगे हैं। (6)
  • कुछ स्त्रियां एक ही साथ चार-चार या पांच-पांच कन्याएं पैदा करती हैं। वे कन्याएं पैदा होते ही नाचती, गाती तथा हंसती हैं। (7)
  • समस्त नीच जातियों के घरों में उत्पन्न हुए काने, कुबडे़ आदि बालक भी महान भय की सूचना देते हुए जोर-जोर से हंसते, गाते और नाचते हैं। (8)
  • ये सब काल से प्रेरित हो हाथों में हथियार लिये मूर्तियां लिखते और बनाते हैं। छोटे-छोटे बच्चे हाथ में डंडा लिये एक दूसरे पर धावा करते हैं। (9)
  • और कृत्रिम नगर बनाकर परस्पर युद्ध की इच्छा रखते हुए उन नगरों को रौंदकर मिट्टी में मिला देते हैं।

पद्म, उत्पल और कुमुद आदि जलीय पुष्‍प वृक्षों पर पैदा होते हैं। (10)

  • चारों ओर भयंकर आंधी चल रही हैं, धूल का उड़ना शान्त नहीं हो रहा है, धरती बार-बार कांप रही है तथा राहु सुर्य के निकट जा रहा है। (11)
  • केतु चित्रा का अतिक्रमण करके स्वाती पर स्थित हो रहा है;[1] उसकी विशेषरूप से कुरुवंश के विनाश पर ही दृष्टि हैं। (12)
  • अत्यन्त भयंकर धूमकेतु पुष्‍य नक्षत्र पर आक्रमण करके वहीं स्थित हो रहा हैं। यह महान उपग्रह दोनों सेनाओं का घोर अमंगल करेगा। (13)
  • मंगल वक्र होकर मघा नक्षत्र पर स्थित है, बृहस्पति श्रवण नक्षत्र पर विराजमान है तथा सूर्यपुत्र शनि पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र पर पहुँचकर उसे पीड़ा दे रहा है। (14)
  • शुक्र पूर्वा भाद्रपदा पर आरूढ़ हो प्रकाशित हो रहा है और सब ओर घूम-फिरकर परिध नामक उपग्रह के साथ उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्रपर दृष्टि लगाये हुए है। (15)
  • केतु नामक उपग्रह धूमयुक्त अग्नि के समान प्रज्वलित हो इन्द्र देवता सम्बन्धी तेजस्वी ज्येष्‍ठा नक्षत्रपर जाकर स्थित है। (16)
  • चित्रा और स्वाती के बीच में स्थित हुआ क्रूर ग्रह राहू सदा वक्र होकर रोहिणी तथा चन्द्रमा और सूर्य को पीड़ा पहुँचाते हैं तथा अत्यन्त प्रज्वलित होकर ध्रुव की बायीं ओर जा रहा है, जो घोर अनिष्‍ट का सूचक है। (17)


Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राहु और केतु सदा एक दूसरे से सातवी राशि पर स्थित होते हैं, किंतु उस समय दोनों एक राशि पर आ गये थे, अत: महान अनिष्‍ट के सूचक थे। सूर्य तुला पर थे, उनके निकट राहु के आने का वर्णन पहले आ चुका है; फिर केतु के वहाँ पहुँचने से महान दुर्योग बन गया है।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः