त्रिशदधिकशततम (130) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: एकत्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद
भीष्म जी कहते हैं- राजन! तदनन्तर सभी महाभाग देवता, पितर तथा महान भाग्यशाली महर्षि प्रमथगणों से बोले- ‘महाभागगण! आप लोग प्रत्यक्ष निशाचर हैं। बताइये, अपवित्र, उच्छिष्ट और शूद्र मनुष्यों की किस तरह और क्यों हिंसा करते हैं? वे कौन-से प्रतिघात (शत्रु के आघातों को रोक देने वाले उपाय) हैं, जिनका आश्रय लेने से आप लोग उन मनुष्यों की हिंसा नहीं करते। वे रक्षोघ्न मन्त्र कौन-से हैं, जिनका उच्चारण करने से आप लोग घर में ही नष्ट हो जाएँ या भाग जाएँ? निशाचरो! ये सारी बातें हम आपके मुख से सुनना चाहते हैं।' प्रमथ बोले- जो मनुष्य सदा स्त्री-सहवास के कारण दूषित रहते, बड़ों का अपमान करते, मूर्खतावश मांस खाते, वृक्ष की जड़ में सोते, सिर पर मांस का बोझा ढोते, बिछौनों पर पैर रखने की जगह सिर रखकर सोते, वे सब-के-सब मनुष्य उच्छिष्ट (अपवित्र) तथा बहुत-से छिद्रों वाले माने गये हैं। जो पानी में मल-मूल एवं थूक फेंकते हैं, वे भी उच्छिष्ट की ही कोटि में आते हैं। ये सभी मानव हमारी दृष्टि में भक्षण और वध के योग्य हैं। इसमें संशय नहीं हैं। जिनके ऐसे शील और आचार हैं, उन मनुष्यों को हम धर दबाते हैं। अब उन प्रतिरोधक उपायों को सुनिये, जिनके कारण हम मनुष्यों की हिंसा नहीं कर पाते। जो अपने शरीर में गोरोचन लगाता, हाथ में वच नामक औषध लिये रहता, ललाट में घी और अक्षत धारण करता तथा मांस नहीं खाता-ऐसे मनुष्यों की हिंसा हम नहीं कर सकते। जिसके घर में अग्निहोत्र की अग्नि नित्य दिन-रात देदीप्यमान रहती है, छोटे जाति के बाघ (जरख) का चर्म, उसी की दाढ़ें तथा पहाड़ी कछुआ मौजूद रहता है, घी की आहुति से सुगन्धित धूम निकलता रहता है, बिलाव तथा काला या पीला बकरा रहता है, जिन गृहस्थों के घरों में ये सभी वस्तुएँ स्थित होती हैं, उन घरों पर भयंकर मांस भक्षी निशाचर आक्रमण नहीं करते हैं। हमारे जैसे जो भी निशाचर अपनी मौज से सम्पूर्ण लोगों में विचरते हैं, वे उपर्युक्त घरों को कोई हानि नहीं पहुँचा सकते। अतः प्रजानाथ! अपने घरों में इन रक्षोघ्न वस्तुओं को अवश्य रखना चाहिये। यह सब विषय, जिसमें आप लोगों को महान संदेह था, मैंने कह सुनाया।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अंतर्गत दानधर्म पर्व में प्रमथगणों का धर्म सम्बंधी रहस्य विषयक एक सौ एकतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज