महाभारत आदि पर्व अध्याय 113 श्लोक 1-14

त्रयोदशाधिकशततम (113) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: त्रयोदशाधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद


राजा पाण्‍डु का पत्नियों सहित वन में निवास तथा विदुर का विवाह

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! बड़े भाई धृतराष्ट्र आज्ञा लेकर राजा पाण्डु ने अपने बाहुबल से जीते हुए धन को भीष्‍म, सत्यवती तथा माता अम्बिका तथा अम्बालिका को भेंट किया। उन्‍होंने विदुर जी के लिये भी वह धन भेजा, धर्मात्‍मा पाण्डु ने अन्य सुहृदों को भी उस धन से तृप्त किया। भारत! तत्‍पश्चात् सत्‍यवती ने पाण्‍डु द्वारा जीत कर लाये हुए शुभ धन के द्वारा भीष्‍म और यशस्विनी कौसल्‍या को भी संतुष्ट किया। माता कौसल्‍या ने अनुपम तेजस्‍वी नरश्रेष्ठ पाण्‍डु को उसी प्रकार हृदय से लगाकर उनका अभिनन्‍दन किया जैसे शची अपने पुत्र जयन्‍त का अभिनन्‍दन करती है। वीरवर पाण्‍डु के पराक्रम से धृतराष्ट्र बड़े-बड़े सौ अश्वमेध यज्ञ किये तथा प्रत्‍येक यज्ञ में एक-एक लाख स्‍वर्णमुद्राओं की दक्षिणा दी।

भरतश्रेष्ठ! राजा पाण्‍डु ने आलस्‍य को जीत लिया था। वे कुन्‍ती और माद्री की प्रेरणा से राजमहलों का निवास और सुन्‍दर शैय्‍याऐं छोड़कर वन में रहने लगे। पाण्‍डु सदा वन में रहकर शिकार खेला करते थे। वे हिमलाय के दक्षिण भाग की रमणीय भूमि में विचरते हुए पर्वत के शिखरों पर तथा ऊंचे शाल वृक्षों से सुशोभित वनों में निवास करते थे। कुन्ती और माद्री के साथ वन में विचरते हुए महाराज पाण्‍डु दो हथिनियों के बीच में स्थित ऐरावत हाथी की भाँति शोभा पाते थे। तलवार, बाण, धनुष और विचित्र कवच धारण करके अपनी दोनों पत्नियों के साथ भ्रमण करने वाले महान् अस्त्रवेत्ता भरतवंशी राजा पाण्‍डु को देखकर वनवासी मनुष्‍य यह समझते थे कि ये कोई देवता हैं। धृतराष्ट्र की आज्ञा से प्रेरित हो बहुत-से मनुष्‍य आलस्‍य छोड़कर वन में महाराज पाण्‍डु के लिये इच्‍छानुसार भोग सामग्री पहुँचाया करते थे। एक समय गंगानन्‍दन भीष्‍म जी ने सुना कि राजा देवक के यहाँ एक कन्‍या है, जो शूद्रजातीय स्त्री के गर्भ से ब्राह्मण द्वारा उत्‍पन्न की गयी है। वह सुन्‍दर रुप और युवावस्‍था से सम्‍पन्न है। तब इन भरतश्रेष्ठ ने उसका वरण किया और उसे अपने यहाँ ले आकर उसके साथ परम बुद्धिमान् विदुर जी का विवाह कर दिया। कुरुनन्‍दन विदुर ने उसके गर्भ से अपने ही समान गुणवान् और विनयशील अनेक पुत्र उत्‍पन्न किये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्व के अन्‍तर्गत सम्‍भव पर्व में विदुरविवाहविषयक एक सौ तेरहवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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