महाभारत वन पर्व अध्याय 83 श्लोक 1-23

त्र्यशीतितम (83) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: त्र्यशीतितम अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद


कुरुक्षेत्र की सीमा में स्थित अनेक तीर्थों की महत्ता का वर्णन

पुलस्त्य जी कहते हैं- राजेन्द्र! तदनन्तर ऋषियों द्वारा प्रशंसित कुरुक्षेत्र की यात्रा करे, जिसके दर्शन मात्र से सब जीव पापों से मुक्त हो जाते हैं। 'मैं कुरुक्षेत्र में जाऊंगा, कुरुक्षेत्र में निवास करूंगा।' इस प्रकार जो सदा कहा करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। वायु द्वारा उड़ाकर लायी हुई कुरुक्षेत्र की धूल भी शरीर पर पड़ जाये, तो वह पापी मनुष्य को भी परमगति की प्राप्ति करा देती है। जो सरस्वती के दक्षिण और दृषद्वती कि उत्तर कुरुक्षेत्र में वास करते हैं, वे मानों स्वर्गलोक में ही रहते है।

नारद जी कहते हैं- युधिष्ठिर! वहाँ सरस्वती के तट पर धीर पुरुष एक मास तक निवास करे; क्योंकि महाराज! ब्रह्मा आदि देवता, ऋषि, सिद्ध, चारण, गन्धर्व, अप्सरा, यक्ष और नाग भी उस परम पुण्यमय ब्रह्मक्षेत्र को जाते हैं। युधिष्ठिर! जो मन से भी कुरुक्षेत्र में जाने की इच्छा रखता है, उसके सब पाप नष्ट हो जाते हैं और वह ब्रह्मलोक को जाता है।

कुरुश्रेष्ठ! श्रद्धा से युक्त होकर कुरुक्षेत्र की यात्रा करने पर मनुष्य राजसूय और अश्वमेध यज्ञों का फल पाता है। तदनन्तर! वहाँ मचक्रुक नाम वाले द्वारपाल महाबली यक्ष को नमस्कार करने मात्र से सहस्र गोदान का फल मिल जाता है। धर्मज्ञ, राजेन्द्र! तत्पश्चात् भगवान् विष्णु के परम उत्तम सतत् नामक तीर्थ स्थान में जाये, जहाँ श्रीहरि सदा निवास करते हैं। वहाँ स्नान और त्रिलोकभावन भगवान् श्रीहरि को नमस्कार करने से मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और भगवान् विष्णु के लोक में जाता है। इसके बाद त्रिभुवन-विख्यात पारिप्लव नामक तीर्थ में जाये। भारत! वहाँ स्नान करने से अग्निष्टोम और अतिरात्र यज्ञों का फल प्राप्त होता है। महाराज! वहाँ से पृथ्वी तीर्थ जाकर स्नान करने से सहस्र गोदान का फल प्राप्त होता है। राजन्! वहाँ से तीर्थसेवी मनुष्य शलूकिनी में जाकर दशाश्वमेधतीर्थ में स्नान करने से उसी फल का भागी होता है। सर्पदेवी में जाकर उत्तम नागतीर्थ का सेवन करने से मनुष्य अग्निष्टोम क फल पाता और नागलोक में जाता है।

धर्मज्ञ! वहाँ से तरन्तुक नामक द्वारपाल के पास जाये। वहाँ एक रात निवास करने से सहस्र गोदान का फल प्राप्त होता है। वहाँ से नियमपूर्वक नियमित भोजन करते हुए पंचनदतीर्थ में जाये और वहाँ कोटितीर्थ में स्नान करे। इससे अश्वमेध यज्ञ का फल प्रापत होता है। अश्विनीतीर्थ में जाकर स्नान करने से मनुष्य रूपवान् होता है। धर्मज्ञ! वहाँ से परम उत्तम वराहतीर्थ को जाये, जहाँ भगवान् विष्णु पहले वराह रूप से स्थित हुए थे। नरश्रेष्ठ! वहाँ स्नान करने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है। राजेन्द्र! तदनन्तर जयन्ती में सोमतीर्थ के निकट जाये, वहाँ स्नान करने से मनुष्य राजसूय यज्ञ का फल पाता है। एकहंसतीर्थ में स्नान करने से मनुष्य सहस्र गोदान का फल पाता है।

नरेश्वर! कृतशौचतीर्थ में जाकर तीर्थसेवी मनुष्य पुण्डरीकयाग का फल पाता है और शुद्ध हो जाता है। तदनन्तर महात्मा स्थाणु के मुंजवट नामक स्थान में जाये। वहाँ एक रात रहने से मानव गणपतिपद प्राप्त करता है। महाराज! वहीं लोकविख्यात यक्षिणीतीर्थ है। राजेन्द्र! उसमें जाने से और स्नान करने से सम्पूर्ण कामनाओं की पूर्ति होती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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