महाभारत आदि पर्व अध्याय 222 श्लोक 1-16

द्वाविंशत्यधिकद्विशततम (222) अध्‍याय: आदि पर्व (खाण्डवदाह पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: द्वाविंशत्यधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद


अग्निदेव का खाण्डववन को जलाने के लिये श्रीकृष्ण और अर्जुन से सहायता की याचना करना, अग्निदेव उस वन को क्यों जलाना चाहते थे, इसे बताने के प्रसंग में राजा श्वेतकि की कथा

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! उन ब्राह्मण देवता ने अर्जुन और सात्वतवंशी भगवान् वासुदेव से, जो विश्वविख्यात वीर थे और खाण्डववन के समीप खड़े हुए थे, कहा- ‘मैं अधिक भोजन करने वाला एक ब्राह्मण हूँ और सदा अपरिमित अन्न भोजन करता हूँ। वीर श्रीकृष्ण और अर्जुन! आज मैं आप दोनों से भिक्षा माँगता हूँ। आप लोग एक बार पूर्ण भोजन कराकर मुझे तृप्ति प्रदान कीजिये।’ उनके ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण और अर्जुन बोले- ‘ब्रह्मन्! बताइये, आप किस अन्न से तृप्त होंगे? हम दोनों उसी के लिये प्रयत्न करेंगे।’ जब वे दोनों वीर ‘आपके लिये किस अन्न की व्यवस्था की जाय?’ इसी बात को बार-बार दुहराने लगे, तब उनके ऐसा कहने पर भगवान् अग्निदेव उन दोनों से इस प्रकार बोले।

ब्राह्मण देवता ने कहा - वीरो! मुझे अन्न की भूख नहीं है, आप लोग मुझे अग्नि समझें। जो अन्न मेरे अनुरूप हो, वही आप दोनों मुझे दें। इन्द्र सदा इस खाण्डववन की रक्षा करते हैं। उन महामना से सुरक्षित होने के कारण मैं इसे जला नहीं पाता। इस वन में इन्द्र का सखा तक्षक नाग अपने परिवार सहित सदा निवास करता है। उसी के लिये वज्रधारी इन्द्र सदा इसकी रक्षा करते हैं। उस तक्षक नाग के प्रसंग से ही यहाँ रहने वाले और भी अनेक जीवों की वे रक्षा करते हैं, इसलिये इन्द्र के प्रभाव से मैं इस वन को जला नहीं पाता। परंतु मैं सदा ही इसे जलाने की इच्छा रखता हूँ। मुझे प्रज्वलित देखकर वे मेघों द्वारा जल की वर्षा करने लगते हैं, यही कारण है कि जलाने की इच्छा रखते हुए भी मैं इस खाण्डववन को दग्ध करने में सफल नहीं हो पाता। आप दोनों अस्त्रविद्या के पूरे जानकार हैं, अतः मैं इसी उद्देश्य से आपके पास आया हूँ कि आप दोनों की सहायता से इस खाण्डववन को जला सकूँ। मैं इसी अन्न की भिक्षा माँगता हूँ। आप दोनों उत्तम अस्त्रों के ज्ञाता हैं, अतः जब मैं इस वन को जलाने लगूँ, उस समय आप लोग ऊपर से बरसती हुई जल की धाराओं तथा इस वन से निकलकर चारों ओर भागने वाले प्राणियों को रोकियेगा।

जनमेजय ने पूछा- ब्रह्मन्! भगवान् अग्निदेव देवराज इन्द्र के द्वारा सुरक्षित और अनेक प्रकार के जीव जन्तुओं से भरे हुए खाण्डववन को किसलिये जलाना चाहते थे? विप्रवर! मुझे इसका कोई साधारण कारण नहीं जान पड़ता, जिसके लिये कुपित होकर हव्यवाहन अग्नि ने समूचे खाण्डववन को भस्म कर दिया। ब्रह्मन्! मुने! पूर्वकाल में खाण्डववन का दाह जिस प्रकार हुआ, वह सब विस्तार के साथ में ठीक-ठीक सुनना चाहता हूँ।

वैशम्पायन जी ने कहा- महाराज जनमेजय! अग्निदेव ने जिस कारण खाण्डववन को जलाया, वह सब वृत्तान्त मैं यथावत् बतलाता हूँ, सुनो। नरश्रेष्ठ! खाण्डववन के विनाश से सम्बन्ध रखने वाली वह प्राचीन कथा महर्षियों द्वारा प्रस्तुत की गयी हैं। उसी को मैं तुमसे कहूँगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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