अष्टाशीतितम (88) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: अष्टाशीतितम अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद
जैसे तीखे दातों वाला चूहा सोये हुए मनुष्य के पैर के माँस को ऐसी कोमलता से काटता है कि वह मनुष्य केवल पैर को कम्पित करता है, उसे पीड़ा का ज्ञान नहीं हो पाता। उसी प्रकार राजा कोमल उपायों से ही राष्ट्र से कर ले, जिससे प्रजा दुखी न हो। पहले थोड़ा-थोड़ा कर लेकर फिर धीरे-धीरे उसे बढ़ावे और उस बढ़े हुए कर को वसूल करे। उसके बाद समयानुसार फिर उसमें थोड़ी-थोड़ी वृद्धि करते हुए क्रमशः रहे (ताकि किसी को विशेष भार न जान पड़े)। जैसे बछड़ों को पहले-पहले बोझ ढोने का अभ्यास कराने वाला पुरुष उन्हें प्रयत्न पूर्वक नाथता है और धीरे-धीरे उन पर भी कर का भार पहले कम रखे; फिर उसे धीरे-धीरे बढ़ावे। यदि उनको एक साथ नाथ कर उन पर भारी भार लादना चाहे तो उन्हें काबू में लाना कठिन हो जायगा; अतः उचित ढंग से उपयोग में लाना चाहिये। ऐसा करने से वे पूरा भार वहन करने के योग्य हो जायँगे। अतः राजा के लिये भी सभी पुरुषों को एक साथ वश में करने का प्रयत्न दुष्कर है, इसलिये उसे चाहिये कि प्रधान-प्रधान मनुष्यों को मधुर वचनों द्वारा सान्त्वना देकर वश में कर ले; फिर अन्य साधारण मनुष्यों को यथेष्ट उपयोग में लाता रहे। तदनन्तर उन परस्पर विचार करने वाले मनुष्यों मे भेद डलवाकर राजा सबको सान्त्वना प्रदान करता हुआ बिना किसी प्रयत्न के सुख पूर्वक सब का उपभोग करे। राजा को चाहिये कि परिस्थिति और समय के प्रतिकूल प्रजा पर कर का बोझ न डाले। समय के अनुसार प्रजा को समझा-बुझाकर उचित रीति से क्रमशः कर वसूल करे। राजन! मैं ये उत्तम उपाय बतला रहा हूँ। मुझे छल-कपट या कूटनीती की बात बताना यहाँ अभीष्ट नहीं है। जो लोग उचित उपाय का आश्रय न लेकर मनमाने तौर पर घोडो़ का दमन करना चाहते हैं, वे उन्हें कुपित कर देते हैं ( इसी तरह जो अयोग्य उपाय से प्रजा को दबाते हैं, वे उनके मन में रोष उत्पन्न कर देते हैं)। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज