नवत्यधिकशततम (191) अध्याय: द्रोण पर्व (द्रोणवध पर्व)
महाभारत: द्रोणपर्व: नवत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
राजेन्द्र! तदनन्तदर आचार्य ने उस अस्त्र को रोकने का प्रयत्न किया, परंतु उन महात्मा के अन्त: करण में वे दिव्यास्त्र पूर्ववत प्रकट न हो सके। उनके निरन्तर बाण चलाते चार दिन और एक रात का समय बीत चुका था। उस दिन के पंद्रह भागों में से तीन ही भाग में उनके सारे बाण समाप्त हो गये। बाणों के समाप्त हो जाने से पुत्र शोक से पीड़ित हुए द्रोणाचार्य नाना प्रकार के दिव्यास्त्रों के प्रकट न होने से महर्षियों की आज्ञा मानकर अब हथियार डाल देने को उद्यत हो गये, इसलिये तेज से परिपूर्ण होने पर भी वे पूर्ववत युद्ध नहीं करते थे। इसके बाद द्रोणाचार्य ने पुन: आडिंग रस नाम दिव्य धनुष तथा ब्रहादण्ड के समान बाण हाथ में लेकर धृष्टद्युम्न के साथ युद्ध आरम्भ कर दिया। उन्होंने अत्यन्त कुपित होकर अमर्ष में भरे हुए धृष्टद्युम्न को अपनी भारी बाण वर्षा से ढक दिया और उन्हें क्षत-विक्षत कर दिया। इतना ही नहीं, द्रोणाचार्य ने अपने तीखे बाणों द्वारा धृष्टद्युम्न के बाण, ध्वज और धनुष के सैकड़ों टुकड़े कर डाले और सारथि को भी मार गिराया। तब धृष्टद्युम्न हंसकर फिर दूसरा धनुष उठाया और तीखे बाण द्वारा आचार्य की छाती में गहरी चोट पहुँचायी। युद्धस्थल में अत्यंत घायल होकर भी महाधनुर्घर द्रोण ने बिना किसी घबराहट के तीखी धार वाले भल्ल से पुन: उनका धनुष काट दिया। प्रजानाथ! धृष्टद्युम्न के जो-जो बाण, तरकस और धनुष आदि थे, उनमें से गदा और खंड को छोड़कर शेष सारी वस्तुओं को दुर्घर्ष द्रोणाचार्य ने काट डाला। शत्रुओं को संताप देने वाले द्रोण ने कुपित होकर क्रोध में भरे हुए धृष्टद्युम्न को नौ प्राणान्तकारी तीक्ष्ण बाणों द्वारा बींध डाला। तब अमेय आत्मबल से सम्पन्न महारथी धृष्टद्युम्न ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करने के लिये अपने रथ के घोड़ों को आचार्य के घोड़ों से मिला दिया। भरतश्रेष्ठ! वे वायु के समान वेगशाली, कबूतर के समान रंग वाले और लाल घोड़े परस्पर मिलकर बड़ी शोभा पाने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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