महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 26 श्लोक 1-17

षड्-विंश (26) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: षड्-विंश अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


कृपाचार्य से धृष्टद्युम्न का भय तथा कृतवर्मा के द्वारा शिखण्डी की पराजय


संजय कहते हैं-राजन! कृपाचार्य ने धृष्टद्युम्न को आक्रमण करते देख युद्धभूमि में उसी प्रकार उन्हें आगे बढ़ने से रोका, जैसे वन में शरभ[1] सिंह को रोक देता है। भारत! अत्यन्त बलवान गौतम-गोत्रीय कृपाचार्य से अवरुद्ध होकर धृष्टद्युम्न एक पग भी चलने में समर्थ न हो सका। कृपाचार्य के रथ को धृष्टद्युम्न के रथ की ओर जाते देख समस्त प्राणी भय से थर्रा उठे और धृष्टद्युम्न को नष्ट हुआ ही मानने लगे। वहाँ सभी रथी और घुड़सवार उदास होकर कहने लगे कि ‘निश्चय ही द्रोणाचार्य के मारे जाने से दिव्यास्त्रों के ज्ञाता, उदारबुद्धि, महातेजस्वी, नरश्रेष्ठ, शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य अत्यन्त कुपित हो उठे होंगे। क्या आज कृपाचार्य से धृष्टद्युम्न कुशल पूर्वक सुरक्षित रह सकेंगे। ‘क्या यह सारी सेना महान भय से मुक्त हो सकती है? कहीं ऐसा न हो कि ये ब्राह्मण देवता यहाँ आये हुए हम सब लोगों का वध कर डालें? ‘इनका यमराज के समान जैसा अत्यन्त भयंकर रूप दिखाई देता है, उससे जान पड़ता है, आज कृपाचार्य भी द्रोणाचार्य के पथ पर ही चलेंगे। ‘कृपाचार्य शीघ्रता पूर्वक हाथ चलाने वाले तथा युद्ध में सर्वथा विजय प्राप्त करने वाले हैं। वे अस्त्रवेत्ता, पराक्रमी और क्रोध से युक्त हैं। ‘आज इस महायुद्ध में धृष्टद्युम्न विमुख होता दिखाई देता है। ‘महाराज! इस प्रकार वहाँ धृष्टद्युम्न और कृपाचार्य का समागम होने पर आपके सैनिकों की शत्रुओं के साथ होने वाली नाना प्रकार की बातें सुनायी देने लगी।

नरेश्वर! तदनन्तर शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य ने क्रोध से लंबी साँस खींचकर निश्चेष्ट खड़े हुए धृष्टद्युम्न के सम्पूर्ण मर्मस्थानों में गहरी चोट पहुँचाई। समरांगण में महामना कृपाचार्य के द्वारा आहत होने पर भी धृष्टद्युम्न को कोई कर्त्तव्य नहीं सुझता था। वे महान मोह से आच्छन्न हो गये थे। तब उनके सारथि ने उनसे कहा- ‘द्रुपद नन्दन! कुशल तो हैं न? युद्ध में आप पर कभी ऐसा संकट आया हो, यह मैंने नहीं देखा है। ‘द्विजश्रेष्ठ कृपाचार्य ने सब ओर से आपके मर्मस्थानों को लक्ष्य करके बाण चलाये थे; परंतु दैवयोग से ही वे मर्मभेदी बाण आपके मर्मस्थानों पर नहीं पड़े हैं। ‘जैसे कोई शक्तिशाली पुरुष समुद्र से नदी के वेग को पीछे लौटा दे, उसी प्रकार मैं आपके इस रथ को तुरंत लौटा ले चलूँगा। मेरी समझ में ये ब्राह्मण देवता अवध्य हैं, जिनसे आज आपका पराक्रम प्रतिहत हो गया'। राजन! यह सुनकर धृष्टद्युम्न ने धीरे से कहा- ‘सारथे! मेरे मन पर मोह छा रहा है और शरीर से पसीना छूटने लगा है। मेरे सारे अंग काँप रहे हैं और रोमांच हो आया है। ‘तुम युद्धस्थल में ब्राह्मण कृपाचार्य को छोड़ते हुए धीरे-धीरे जहाँ अर्जुन हैं, उसी ओर चल दो। समरांगण में अर्जुन अथवा भीमसेन के पास पहुँचकर ही आज मैं सकुशल रह सकता हूँ, ऐसा मेरा दृढ़ विचार है'।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शरभ आठ पैरों का एक जानवर है, जिसका आधा शरीर पशु का और आधा पक्षी का होता है। भगवान नृसिंह की भाँति उसका शरीर भी द्विचिध आकृतियों के सम्मिश्रण से बना है। वह इतना प्रबल है कि सिंह को भी मार सकता है।

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