महाभारत आदि पर्व अध्याय 9 श्लोक 1-23

नवम (9) अध्‍याय: आदि पर्व (पौलोम पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: नवम अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद


रुरु की आधी आयु से प्रमद्वरा का जीवित होना, रुरु के साथ उसका विवाह, रुरु का सर्पों को मारने का निश्चय तथा रुरु-डुण्डुभ-संवाद

उग्रश्रवा जी कहते हैं- शौनक जी! वे ब्राह्मण प्रमद्वरा के चारों ओर वहाँ बैठे थे, उसी समय रुरु अत्यन्त दुःखित हो गहनवन में जाकर जोर-जोर से रुदन करने लगा। शोक से पीड़ित होकर उसने बहुत करुणाजनक विलाप किया और अपनी प्रियतमा प्रमद्वरा का स्मरण करके शोकभग्न हो इस प्रकार बोला- ‘हाय! वह कृशांगी बाला मेरा तथा समस्त बान्धवों का शोक बढ़ाती हुई भूमि पर सो रही है; इससे बढ़कर दुःख और क्या हो सकता है? यदि मैंने दान दिया हो, तपस्या की हो अथवा गुरुजनों की भली-भाँति आराधना की हो तो उसके पुण्य से मेरी प्रिया जीवित हो जाये। यदि मैंने जन्म से लेकर अब तक मन और इन्द्रियों पर संयम रखा हो और ब्रह्मचर्य आदि व्रतों का द्दढ़तापूर्वक पालन किया हो तो यह मेरी प्रिया प्रमद्वरा अभी जी उठे। (यदि पापी असुरों का नाश करने वाले, इन्द्रियों के स्वामी जगदीश्वर एवं सर्वव्यापी भगवान श्रीकृष्ण में मेरी अविचल भक्ति हो तो यह कल्याणी प्रमद्वरा जी उठे।') इस प्रकार जब रुरु पत्नी के लिये दुःखित हो अत्यन्त विलाप कर रहा था, उस समय एक देवदूत उसके पास आया और वन में रुरु से बोला।

देवदूत ने कहा- 'धर्मात्मा रुरु! तुम दुःख से व्याकुल हो अपनी वाणी द्वारा जो कुछ कहते हो, वह सब व्यर्थ है क्योंकि जिस मनुष्य की आयु समाप्त हो गयी है, उसे फिर आयु नहीं मिल सकती। यह बेचारी प्रमद्वरा गन्धर्व और अप्सरा की पुत्री थी। इसे जितनी आयु मिली थी, वह पूरी हो चुकी है। अतः तात! तुम किसी तरह भी मन को शोक में न डालों। इस विषय में महात्मा देवताओं ने एक उपाय निश्चित किया है। यदि तुम उसे करना चाहो, तो इस लोक में प्रमद्वरा को पा सकोगे।'

रुरु बोला– 'आकाशचारी देवदूत! देवताओं ने कौन सा उपाय निश्चित किया है, उसे ठीक-ठीक बताओ? उसे सुनकर मैं अवश्य वैसा ही करूँगा। तुम मुझे इस दुःख से बचाओ।'

देवदूत ने कहा- 'भृगुनन्दन रुरु! तुम उस कन्या के लिये अपनी आधी आयु दे दो। ऐसा करने से तुम्हारी भार्या प्रमद्वरा जी उठेगी।'

रुरु बोला- 'देवश्रेष्ठ! मैं उस कन्या को अपनी आधी आयु देता हूँ। मेरी प्रिया अपने श्रृगांर, सुन्दर रूप और आभूषणों के साथ जीवित हो उठे।'

उग्रश्रवा जी कहते हैं- तब गन्धर्वराज विश्वावसु और देवदूत दोनों सत्पुरुषों ने धर्मराज के पास जाकर कहा। ‘धर्मराज! रुरु की भार्या कल्याणी प्रमद्वरा मर चुकी है। यदि आप मान लें तो वह रुरु की आधी आयु से जीवित हो जाये।'

धर्मराज बोले- देवदूत! यदि तुम रुरु की भार्या प्रमद्वरा को जिलाना चाहते हो तो वह रुरु की ही आधी आयु से संयुक्त होकर जीवित हो उठे।

उग्रश्रवा जी कहते हैं- धर्मराज के ऐसा कहते ही वह सुन्दरी मुनि कन्या प्रमद्वरा रुरु की आधी आयु से संयुक्त हो सोयी हुई की भाँति जाग उठी। उत्तम तेजस्वी रुरु के भाग्य में ऐसी बात देखी गयी थी। उनकी आयु बहुत बढ़ी-चढ़ी थी। जब उन्होंने भार्या के लिये अपनी आधी आयु दे दी, तब दोनों के पिताओं ने निश्चित दिन में प्रसन्नतापूर्वक उनका विवाह कर दिया। वे दोनों दम्पति एक-दूसरे के हितैषी होकर आनन्दपूर्वक रहने लगे। कमल के केसर की-सी कान्ति वाली उस दुर्लभ भार्या को पाकर व्रतधारी रुरु ने सर्पों के विनाश का निश्चय कर लिया।

वह सर्पों को देखते ही अत्यन्त क्रोध में भर जाता और हाथ में डंडा ले उन पर यथाशक्ति प्रहार करता था। एक दिन की बात है, ब्राह्मण रुरु किसी विशाल वन में गया, वहाँ उसने डुण्डुभ जाति के एक बूढ़े साँप को सोते देखा। उसे देखते ही उसके क्रोध का पारा चढ़ गया और उस ब्राह्मण ने उस समय सर्प को मार डालने की इच्छा से कालदण्ड के समान भयंकर डंडा उठाया। तब उस डुण्डुभ ने मनुष्य की बोली में कहा- ‘तपोधन! आज मैंने तुम्हारा कोई अपराध तो नहीं किया है? फिर किसलिये क्रोध के आवेश में आकर तुम मुझे मार रहे हो।'

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदि पर्व के अंतर्गत पौलोम पर्व में प्रमद्वरा के जीवित होने से सम्बन्ध रखने वाला नवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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