महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 17 श्लोक 16-26

सप्तदश (17) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: सप्तदश अध्याय: श्लोक 16-26 का हिन्दी अनुवाद

उसके बाणों से पीड़ित हुए अर्जुन ने आगे बढ़कर सहसा शस्त्रों द्वारा शत्रु के बाणजनित अन्धकार को नष्ट करके उत्तम पंख वाले अपने बाणों द्वारा अश्वत्थामा तथा आपके अन्य समस्त सैनिकों को पुनः घायल कर दिया। रथ पर बैठे हुए सव्यसाची अर्जुन कब तरकस से बाण लेते, कब उन्हें धनुष पर रखते और कब छोड़ते हैं, यह नहीं दिखायी देता था। सब लोग यही देखते थे कि रथियों, हाथियों, घोड़ों और पैदल सैनिकों के शरीर उनके बाणों से गुँथे हुए हैं और वे प्राणशून्य हो गये हैं। तब अश्वत्थामा ने बड़ी उतावली के साथ अपने धनुष पर दस उत्तम नाराच रखे और उन सबकों एक के ही समान एक साथ छोड़ दिया। उनमें से पाँच सुन्दर पंख वाले नाराचों ने अर्जुन को बींध डाला और पाँच ने श्रीकृष्ण को क्षत-विक्षत कर दिया। उन बाणों से आहत होकर सम्पूर्ण मनुष्यों में श्रेष्ठ, कुबेर और इन्द्र के समान पराक्रमी वे दोनों वीर श्रीकृष्ण और अर्जुन अपने अंगों से रक्त बहाने लगे। जिसकी विधा पूरी हो चुकी थी, उस अश्वत्थामा के द्वारा इस प्रकार पराभाव को प्राप्त हुए उन दोनों को अन्य सब लोगों ने यही समझा कि ‘वे रणभूमि में मारे गये।'

तब दशार्हवंश के स्वामी श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा- ‘पार्थ! तुम क्यों प्रमाद कर रहे हो? इस योद्धा को मार डालो। इसकी उपेक्षा की जायगी तो यह और भी नये-नये अपराध करेगा और जिसकी चिकित्सा न की गई हो, उस रोग के समान अधिक कष्टदायक हो जायेगा‘। ‘बहुत अच्छा, ऐसा ही करूँगा ‘श्रीकृष्ण से ऐसा कहकर सतत सावधान रहने वाले अर्जुन अपने बाणों द्वारा प्रयत्न पूर्वक अश्वत्थामा को-उसके चन्दनसार चर्चित श्रेष्ठ भुजाओं, वक्षःस्थल, सिर और अनुपम जाँघों को क्षत-विक्षत करने लगे। क्रोध में भरे हुए अर्जुन ने गाण्डीव धनुष से छूटे हुए भेड़ के कान जैसे अग्रभाग वाले बाणों द्वारा युद्ध स्थल में द्रोण पुत्र को विदीर्ण कर डाला। घोड़ों की बागडोर काटकर उन्हें अत्यन्त घायल कर दिया। इससे वे घोड़े अश्वत्थामा को रणभूमि से बहुत दूर भगा ले गये। अश्वत्थामा अर्जुन के बाणों से बहुत पीड़ित हो गया था। जब वायु के समान वेगशाली घोड़े उसे रणभूमि से बहुत दूर हटा ले गये,तब उस बुद्धिमान वीर ने मन-ही-मन विचार करके पुनः लौटकर अर्जुन के साथ युद्ध करने की इच्छा त्याग दी। अंगिरा गोत्रवाले ब्राह्मणों में सर्वश्रेष्ठ अश्वत्थामा यह जान गया था कि वृष्णिवीर श्रीकृष्ण और अर्जुन की विजय निश्चित है।

मान्यवर! अपने घोड़ों को रोककर थोड़ी देर उनको स्वस्थ कर लेने के बाद द्रोणकुमार अश्वत्थामा रथ, घोड़े और पैदल मनुष्यों से भरी हुई कर्ण की सेना में प्रविष्ट हो गया। जैसे मन्त्र, औषध, चिकित्सा और योग के द्वारा शरीर से रोग दूर हो जाता है, उसी प्रकार जब प्रतिकूल कार्य करने वाला अश्वत्थामा चारों घोड़ों द्वारा रणभूमि से दूर हटा दिया गया, तब वायु से फहराती हुई पताकाओं से युक्त और जलप्रवाह के समान गम्भीर घोष करने वाले रथ के द्वारा श्रीकृष्ण और अर्जुन फिर संशप्तकों की ओर चल दिये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में अश्वत्थामा की पराजय विषयक सत्राहवाँ अध्याय पुरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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