हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 127 श्लोक 81-85

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 127 श्लोक 81-85

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प्रकृतिर्या विकारेषु वर्तते पुरुषर्षभ।
तस्यात विकारशमने वर्तसे त्वंष महाद्युते।।81।।

विकारो वा विकाराणां विकाराय न तेअनघ।
तानधर्मविदो मन्दाान् भवान्‍ विकुरुते सदा।।82।।

इदं प्रकृतिजैर्दोषैस्तकमसा मुह्यते यदा।
रजसा वापि संस्पृोष्टंस तदा मोह: प्रवर्तते।।83।।

परावरज्ञ: सर्वज्ञ ऐश्व‍र्यविधिमास्थित:।
किं मोहयसि न: सर्वान्‍ प्रजापतिरिव स्वतयम्।।84।।

वरुणेनैवमुक्त स्तुर कृष्णोर लोकपरायण:।
भावज्ञ: सर्वकृद् धीरस्तकत: प्रीतमना ह्यभूत्।।85।।
इत्येञवमुक्तस: कृष्णतस्तुय प्रहसन्‍वाक्यमब्रवीत्।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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