हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 127 श्लोक 76-80

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 127 श्लोक 76-80

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पूर्वं हि या त्वया सृष्टा प्रकृतिर्विकृतात्मका।
धर्मिणी बीजभावेन पूर्वधर्म समाश्रिता।।76।।

आग्नेयं वैष्णवं सौम्यं प्रकृत्यैवेदमादित:।
त्वया सृष्टं जगदिदं स कथं मयि वर्तसे।।77।।

अजेय: शाश्वंतो देव: स्वतयम्भूवर्भूतभावन:।
अक्षरं च क्षरं चैव भावाभावौ महाद्युते।।78।।

रक्षमां रक्षणीयोऽहं त्व‍यानघ नमोऽस्तु ते।
आदिकर्तासि लोकानां त्वयैतद् बहुलीकृतम्।।79।।

विक्रीडसि महादेव बाल: क्रीडनकैरिव।
न ह्यहं प्रकृतिद्वेषी नाहं प्रकृतिदूषक:।।80।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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