हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 63 श्लोक 112-126

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: त्रिषष्टितम अध्याय: श्लोक 112-126 का हिन्दी अनुवाद

वीर श्रीकृष्ण ने इन्द्र धनुष के समान ऊँचा उठाया और सूर्य किरणों के समान चमचमाता हुआ बाण हाथ में लिया। उन्होंने समरांगण में अपने दिव्यास्त्र द्वारा नरकासुर के उस रथ को भर दिया, तब बलवान नरकासुर ने भी बड़े वेग से आघात करने वाले उत्तम अस्त्र का प्रहार किया। वज्र के समान गड़गड़ाहट पैदा करते हुए उस अस्त्र को आते देख महाभाग मधुसूदन केशव ने चक्र के द्वारा उसका उच्छेद कर डाला। भगवान श्रीकृष्ण ने एक बाण से उसके सा‍रथि को मार डाला और दस बाणों से ध्वज और घोड़ों सहित उस रथ का संहार कर डाला।

इसके बाद मधुसूदन ने एक बाण से उसके कवच को काट गिराया। कवच कट जाने पर उसका शरीर केंचुल से निकले हुए सर्प के समान प्रतीत होने लगा। घोड़ों के मारे जाने तथा कवच के कट जाने पर भी रणभूमि में खड़े हुए उस दानव वीर ने एक निर्मल ज्वाला से युक्त, लोहभार से सम्पन्न और सुदृढ़ शूल हाथ में लिया, जो इन्द्र के वज्र की भाँति प्रकाशित हो रहा था। उसने उस शूल को अपनी ओर आता देख अद्भुतकर्मा श्रीकृष्ण ने एक क्षुरप्र के द्वारा उसके दो टुकड़े कर डाले। उस समय उनका उस भयानक रुपधारी विशालकाय राक्षस नरक के साथ शस्त्रों के सम्‍पात एवं महाघात से युक्त घोर युद्ध हुआ। उग्र चक्रधारी मधुसूदन ने दो घड़ी तक नरकासुर के साथ युद्ध किया। तत्पश्चात प्रज्वलित चक्र द्वारा उसके शरीर के टुकड़े कर डाले।

चक्र से दो टूक हुआ नरकासुर का शरीर पृथ्वी पर गिर पड़ा, मानो किसी पर्वत का शिखर वज्र के आघात से दो भागों में विभक्त होकर धराशायी हो गया हो। देवेश्वर पर श्रीकृष्ण से टक्कर लेकर वह सूर्य की भाँति अस्ताचल को चला गया। चक्र से शरीर के टूक-टूक हो जाने पर वह दानव रणभूमि में गिर पड़ा। उस समय वह वज्र के प्रहार से विदीर्ण हुए गेरु के पहाड़-जैसा जान पड़ता था। अपने पुत्र को गिरा हुआ देख मूर्तिमती भूमि देवी अदिति के दोनों कुण्डल ले गोविन्द की सेवा में उपस्थित हुई और इस प्रकार बोली- 'गोविन्द! आप ही ने मुझे यह पुत्र प्रदान किया था और आप ही ने इसे मार गिराया। प्रभो! आपकी जैसी इच्छा हो वैसी क्रीड़ा कीजिये, ठीक वैसे ही, जैसे बालक खिलौनों से खेला करता है। देव! ये ही वे दोनों कुण्डल हैं, इन्हें लीजिये और उस नरकासुर की संतान का पालन कीजिये।'

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में नरकासुर का वध विषयक तिरसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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