हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 63 श्लोक 97-111

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: त्रिषष्टितम अध्याय: श्लोक 97-111 का हिन्दी अनुवाद

उसके साथ धुएँ के समान रंग वाले विशालकाय लाल नेत्र और विकराल मुख वाले जो दैत्य, दानव और राक्षस आये थे, वे सब-के-सब नाना प्रकार के कवच धारण किये हुए थे। कोई ढाल और तलवार लिये हुए थे तो कोई धनुष, बाण और तरकस। किन्हीं के हाथ में शक्ति थी तो किन्हीं के हाथ में शूल। वे सब भली-भाँति कवच आदि से सुसज्जित एवं प्रहार करने के लिये उद्यत हो हाथी, घोड़े तथा रथसमूहों द्वारा पृथ्वी को कम्पित करते हुए नगर से बाहर निकले। दैत्य-समूहों से घिरे हुए कालसदृश नरकासुर ने बजते हुए शंख, भेरी, मृदंग तथा पणव आदि सहस्रों वाद्यों का मेघ की गर्जना के समान गम्भीर शब्द सुना। वे सभी विकराल मुख वाले निशाचर जहाँ कृष्ण थे, उधर ही जाकर गरुड़ को घेरकर खड़े हो गये और सब-के-सब संगठित होकर युद्ध करने लगे। उन समस्त सैनिकों ने बाणों की बड़ी भारी वर्षा करके भगवान को ढक दिया। उन्होंने कई सहस्र शक्ति, शूल, गदा, प्रास, तोमर और सायकों का प्रहार करके आकाश को आच्छा‍दित कर दिया।

काले मेघ के समान श्यामसुन्दर शरीर वाले जनार्दन श्रीकृष्ण ने मेघ की गर्जना के समान गम्भीर ध्वनि करने वाले शारंग नामक सुविशाल धनुष को हाथ में लेकर उसे खींचा और दानवों पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। उस बाण वर्षा से भयभीत हो असुरों की वह सेना उस महासमर से भाग खड़ी हुई। उस भयंकर रुपधारी राक्षस के साथ श्रीकृष्ण का घोर युद्ध हुआ। वे सभी दानव श्रीकृष्ण के बाणों से अत्यन्त पीड़ित हो अपनी सेना का व्यूह भंग करके भाग गये। किन्हीं की भुजाएँ कट गयी थीं।

किन्हीं के चक्र द्वारा दो टुकड़े हो गये थे और किन्हीं के वक्ष:स्थल बाणों के आघात से पीड़ित हो रहे थे। कोई हाथी, घोड़े और रथों पर सवार होकर युद्ध करने वाले योद्धा शक्ति‍ के प्रहार से दो टूक हो गये ‍थे। कोई कौमोद की गदा के आघात से पिस गये थे तथा कितने ही चक्र द्वारा विदीर्ण कर दिये गये थे। इस प्रकार मनुष्य, घोड़े रथ और हाथियों से युक्त वह सारी सेना मथ डाली गयी थी। वहाँ नरकासुर के साथ भगवान श्रीकृष्ण अत्यन्त दारुण युद्ध हुआ था। यहाँ मैं संक्षेप से जो कुछ बता रहा हूँ, वह मेरे मुख से सुनो। देव समुह को त्रास देने वाला तेजस्वी नरकासुर मधु की भाँति मधुसूदन भगवान पुरुषोत्तम के साथ युद्ध करने लगा। उसके नेत्र प्रान्त क्रोध से लाल हो रहे थे और उसकी आकृति मेघ के समान काली थी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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