हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 57 श्लोक 45-59

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: सप्तपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 45-59 का हिन्दी अनुवाद

'देवताओं! जो मुझे सोते से जगा दे, उसे मैं क्रोध से प्रज्वलित हुई दृष्टि के द्वारा जलाकर भस्म कर दूँ।' ऐसा उन्होंने बारंबार कहा तब देवताओं सहित इन्द्र ने उनसे कहा 'एवमस्तु' (ऐसा ही हो)। इस प्रकार देवताओं से आज्ञा लेकर वे गिरिराज के पास आये श्रम से थके हुए राजा ने पर्वत की किसी गुफा में प्रवेश करके उस समय तक शयन किया, जब तक कि उन्हें श्रीकृष्ण दर्शन नहीं हुआ था। राजा मुचुकुन्द के तेज तथा देवताओं से उन्हें मिले हुए वरदान की सारी बातें देवर्षि नारद ने वसुदेव नन्दन भगवान श्रीकृष्ण को बतायी थी। उस शत्रु के द्वारा पीछा किये जाते हुए श्रीकृष्ण ने मुचुकुन्द की उस गुफा में एक विनीत पुरुष की भाँति प्रवेश किया। बुद्धिमानों में श्रेष्ठ श्रीकृष्ण राजर्षि मुचुकुन्द के सिरहाने की ओर उनके दृष्टि पथ को त्यागकर (अर्थात जहाँ से उन्हें दिखायी न दे सके- ऐसे स्थान पर) खडे़ हो गये।

उनके पीछे-पीछे उस कालयवन ने भी गुफा में प्रवेश करके सोये हुए राजा मुचुकुन्द को देखा। वह दुर्बुद्धि अपने लिये काल के समान उन नरेश के पास स्वयं ही जा पहुँचा जैसे पतिंगा अपने ही विनाश के लिये आग में कूद पड़ता है, उसी प्रकार कालयवन ने मुचुकुन्द को श्रीकृष्ण समझकर उन्हें अपने विनाश के लिये ही लात से मारा। राजर्षि मुचुकुन्द उसके पैरों की ठोकर लगने से जाग उठे। एक तो उनकी निद्रा भंग हुई थी और दूसरे उस यवन ने उन्हें पैर से छू दिया था, इससे वे कुपित हो उठे फिर इन्द्र से मिले हुए वर का स्मरण करके उन्होंने सामने खड़े हुए कालयवन की ओर देखा। उनके क्रोधपूर्वक देखते ही वह सब ओर से आग में जलने लगा जैस वज्र सूखे वृक्ष को जला देता है।

उसी प्रकार मुचुकुन्द के नेत्रों के तेज से प्रकट हुई उस अग्नि ने कालयवन को क्षणभर में ही जलाकर भस्म कर दिया। बुद्धिमान भगवान श्रीकृष्ण का अभीष्ट कार्य सिद्ध हो गया। वे चिरकाल से सोये हुए उन तेजस्वी राजा मुचुकुन्द से यह उत्तम वचन बोले- 'राजन! आप दीर्घकाल से यहाँ सो रहे थे। मुझे नारद जी ने आपके विषय में बताया था। आपने मेरा महान कार्य सिद्ध कर दिया। आपका कल्याण हो। अब मैं जाता हूँ।' राजा मुचुकुन्द ने वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण को कद में छोटा देखकर यह समझ लिया कि दीर्घकाल व्यतीत होने से युग बदल गया।

राजा ने गोविन्द से पूछा- 'आप कौन हैं और किसलिये यहाँ आये हैं? मेरे सोते-सोते कितना समय व्यतीत हो गया? यदि जानते हो तो बताइये।'


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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