हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 22 श्लोक 97-103

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्वाविंश अध्याय: श्लोक 97-103 का हिन्दी अनुवाद


समझा-बुझाकर काम लेना ही बालकों के प्रति प्रधान एवं प्रमुख नीति है; इसलिये तुम उन दोनों मूर्खों से स्‍वयं ही राजी करके यहाँ शीघ्र ले आओ। उत्तम व्रत का पालन करने वाले अक्रूर! यदि वसुदेव ने तुम्‍हारे भी कान न भर दिये हो तो तुम मेरी इस परम दुर्लभ प्रीति का सम्‍पादन करो। तुम्‍हें वैसा ही प्रयत्‍न करना चाहिये, जिससे वे दोनों स्‍वत: यहाँ आ जायँ। कंस के इस प्रकार आक्षेप करने पर भी वसुओं के समान शक्तिशाली वसुदेव ने अपने समुद्र- जैसे हृदय को क्षुब्‍ध या कम्पित नहीं होने दिया। उसे धैर्यपूर्वक काबू में रखा। अदूरदर्शी कंस ने उन्‍हें बाग्‍बाणों से बार-बार घायल किया। फिर भी उन्‍होंने मन में क्षमाभाव रखकर उसे उसकी बातों का कोई उत्तर नहीं दिया। जिन लोगों ने वहाँ वसुदेव जी पर बारम्‍बार आक्षेप होता देखा, वे अपना मुँह नीचे किेये धीरे-धीरे अनेक बार बोल उठे कि धिक्‍कार है, धिक्‍कार है। महातेजस्‍वी अक्रूर अपनी दिव्‍य दृष्टि से सब कुछ जानते थे (कि भगवान श्रीकृष्‍ण कौन हैं और किसलिये अवतीर्ण हुए हैं); अत: जैसे प्‍यासा मनुष्‍य पानी को देखते ही प्रसन्‍न हो उठता है, उसी प्रकार उन्‍हें कंस के भेजने पर बड़ी प्रसन्नता का अनुभव हुआ। दानपति अक्रूर मन-ही-मन प्रसन्‍न हो स्‍वयं जाकर कमलनयन श्रीकृष्‍ण का दर्शन करने के लिये उसी मुहूर्त में मथुरा से निकल पड़े।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्‍तर्गत विष्‍णु पर्व में अक्रूर का प्रस्‍थान विषयक बाईसवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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