हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 22 श्लोक 80-96

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्वाविंश अध्याय: श्लोक 80-96 का हिन्दी अनुवाद


चक्रवर्तियों के[1] सुविख्‍यात एवं महान कल में तुम्‍हारा जन्‍म हुआ, तुम स्‍वयं भी प्रसिद्ध हो तथा धर्मविषयक बुद्धि रखने वाले श्रेष्ठ महापुरुषों ने उसी गौरव के कारण तुम्‍हारा जन्‍म हुआ, तुम स्‍वयं भी प्रसिद्ध हो तथा धर्मविषयक बुद्धि रखने वाले श्रेष्ठ महापुरुषों ने उसी गौरव के कारण तुम्‍हारा पूजन, आदर-सत्‍कार किया है। तुम यदुवंशियों के समुदाय में मुख्‍य हो। जब तुम्‍हारा आचार व्यवहार ऐसा है (तो औरों का क्‍या कहा जाय?) क्‍या करें, हम सब लोग केवल तुम्‍हारे कारण सत्‍पुरुषों के समाज में निन्‍दा के पात्र बन गये। वसुदेव की दुर्नीति से मेरा वध हो अथवा विजयी, आज से यदुकुल के पुरुष सज्‍जनों के समाज में अपना मुँह ढँककर जायँगे।

वसुदेव! तुमने युद्ध में मेरे वध का उपाय सोचते-सोचते ऐसा कर्म कर डाला‍, जिसके कारण यादवों के ऊपर से सबका विश्वास उठ गया। तुमने यदुवंशियों को कलंकित करके निन्‍दा के योग्‍य बना दिया। अब तो हम दोनों में- मुझ कंस और कृष्‍ण में कभी शान्‍त न होने वाला वैर उत्‍पन्‍न हो गया है। हममें से किसी एक व्‍यक्ति के शान्‍त होने- मर जाने पर ही यादवों को शान्ति मिलेगी। दानपते अक्रूर! तुम मेरे आदेश से वसुदेव के उन दोनों पुत्रों को, नन्‍दगोप तथा मुझे कर देने वाले अन्‍य गोपों को भी व्रज से यहाँ बुला लाने के लिये शीघ्र जाओ। नन्‍दगोप से कह देना कि तुम हमारा वार्षिक कर लेकर गोपों के साथ शीघ्र ही मथुरापुरी को चलो। वसुदेव के दोनों पुत्र जो श्रीकृष्‍ण और संकर्षण हैं, इन्‍हें सेवकों और पुरोहितों सहित महाराज कंस देखना चाहते हैं। सुनता हूँ कि ये दोनों अखाड़े में लड़ना जानते हैं और सामयिक युद्ध की कला में कुशल हैं। इन्‍होंने दीर्घकाल से इसके लिये विशेष यत्‍न और परिश्रम किया है तथा ये दोनों भाई सुदृढ़ और चतुर हैं। हमारे यहाँ भी दो पहलवान लड़ाई के लिये तैयार हैं। इन्‍हें लड़ने-भिड़ने में बड़ा आनन्‍द आता है। वे दोनों ही युद्ध में कुशल हैं, जो उन दोनों श्रीकृष्‍ण और संकर्षण के साथ युद्ध करेंगे। वे दोनों देवोपम बालक मेरी चचेरी बहिन के प्रधान पुत्र हैं, जो इस समय व्रज में रहते और वन में विचरते हैं। मुझे अवश्‍य उन दोनों को देखना चाहिये।

उस व्रज में जाकर व्रजवासियों के समीप तुम्‍हें यह कहना चाहिये कि सुखी राजा कंस धनुर्यज्ञ का उत्‍सव करायेंगे। उस उत्‍सव में आमन्त्रित हुए लोगों को जिस प्रकार हर तरह से आराम मिले, उसके लिये तुम सब व्रजवासी मथुरा के समीपवर्ती वन में आकर सुखपूर्वक रहो। दूध, घी, दही और तक्र आदि को अतिथियों की इच्‍छा के अनुसार जुटाकर देना और खीर आदि बनाने के लिये जब जितने दूध को आग पर रखना आवश्‍यक हो, तब-तब उस आवश्‍यक हो, तब-तब उस आवश्‍यकता की पूर्ति के लिये पर्याप्‍त दूध प्रस्‍तुत करना-इसी उद्देश्‍य से तुम्‍हें नगर के निकट निवास करना है। अक्रूर! शीघ्र जाओ। मेरी आज्ञा से उन दोनों संकर्षण और कृष्‍ण को यहाँ ले आओ। मुझे उन्‍हें देखने के लिये बड़ी उत्‍कण्‍ठा है। उनके आ जाने से मुझे बड़ी प्रसन्‍नता होगी (जिसका श्रेय तुम्‍हें मिलेगा)। उन दोनों महापराक्रमी बालकों को देखकर मैं वही करूँगा, जिससे मेरा हित होगा। मेरी यह आज्ञा तथा बातें सुनकर यदि वे दोनों यहाँ ठीक समय पर आने को तैयार न हो तो मेरी राय में वे बंदी बना लेने के भी योग्‍य हैं (अर्थात तुम उन्‍हें कैद करके भी ला सकते हो)।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यद्यपि ययाति के शाप से यदुकुल का कोई भी पुरुष चक्रवर्ती राजा नहीं हुआ तथापि यहाँ चक्रवर्ती के लक्षण-विशेष से सम्‍पन्‍न पुरुषों को ही चक्रवर्ती कहा गया है। वह लक्षण इस प्रकार है- यस्‍य मूर्धनि दृश्‍येत विना छत्रेण भूपते:। पदमानुकारिणी छाया तमाहुश्‍चक्रवर्तिनम्।। अर्थात जिस राजा के मस्‍तक पर बिना छत्र लगाये ही कमल जैसी छाया दिखायी दे, उसे चक्रवर्ती कहते हैं।

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