हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 126 श्लोक 61-80

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: षड्-विंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 61-80 का हिन्दी अनुवाद


तत्पश्चात उस अस्त्र के बल और वेग से आग की लपटों से युक्त परम दारुण बाणों की अत्यन्त वेगपूर्वक घोर वर्षा होने लगी। बाणासुर के उस अस्त्र के छूटते ही भगवान केशव दग्‍ध से होने लगे। उस समय आकाश में न तो हवा चलती थी और न मेघों का ही संचार होता था। तब भगवान मधुसूदन ने उस रणभूमि में काल और अन्तक के समान भयंकर तथा महान वेगशाली पार्जन्य नामक अस्त्र उठाया और चला दिया। फिर तो जगत का अन्धकार दूर हो गया, बाणासुर के बाणों की आग बुझ गयी और समस्त दानवों के मनसूबे उस समय व्यर्थ हो गये। पार्जन्यास्त्र के अभिमन्त्रित होने पर उस दानवास्त्र को शान्त हुआ देख समस्त देवता सिंहनाद करने और हँसने लगे। महाराज! अपने अस्त्र के नष्ट हो जाने पर वह दैत्य क्रोध से अचेत सा हो गया। उसने गरुड़ पर बैठे हुए श्रीकृष्ण को पुन: मुसलों और पट्टिशों की वर्षा से ढक दिया। शत्रुसूदन केशव ने उसके द्वारा वेगपूर्वक की हुई उस सारी बाण-वर्षा का हँसते-हँसते निवारण कर दिया। श्रीकृष्ण का जब बाणासुर के साथ महान युद्ध होने लगा, उस समय उन्होंने अपने शांर्गधनुष से छूटे हुए वज्रतुल्य बाणों द्वारा उसके अश्व, ध्वज और पताका सहित रथ को तिल-तिल करके काट डाला। तत्पश्चात महातेजस्वी केशव ने उसके शरीर से कवच को, मस्तक से महातेजस्वी कुकुट को तथा हाथ से धनुष और दस्ताने को काट गिराया, साथ ही हँसते हुए-से उन्होंने एक नाराच द्वारा उसकी छाती में गहरी चोट पहुँचायी। युद्धस्थल में वह मर्मभेदी आघात लगने पर उसकी चेतना क्षीण हो चली और व मूर्च्छित होकर गिर पड़ा। बाणासुर को श्रीकृष्ण के प्रहार से अत्यन्त पीड़ित एवं मूर्च्छित हुआ देख उसके महल के ऊँचे शिखर पर खड़े हुए मुनिवर नारद बार-बार उठकर उसकी ओर देखने लगे। उस समय वे अपनी भुजाओं पर ताल ठोंकते और नख बजाते हुए इस प्रकार कहने लगे- ‘अहोभाग्‍य! अहोभाग्‍य!!’

‘अहो! आज मेरा जन्म सफल है! यह जीवन उत्तम जीवन है, क्योंकि मैंने श्रीकृष्ण का यह अद्भुत पराक्रम अपनी आँखों से देख लिया। महाबाहो! आप इस देवद्रोही दैत्य बाणासुर को पराजित कीजिये और जिसके लिये आपका अवतार हुआ है, उस कर्म को सफल बनाइये’। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति करके उस समय आकाश को प्रकाशित करते हुए नारद जी इधर-उधर पड़ते हुए तीखे बाणों के साथ रणक्षेत्र में विचरने लगे। जब श्रीकृष्ण का बाणासुर के साथ वह महाभयंकर संग्राम चल रहा था, उस समय वहाँ उन दोनों के ध्वजचिह्न वाहन एक-दूसरे पर टूट पड़े और युद्ध करने लगे। भगवान तथा दैत्य दोनों के उन वाहनों में गहरी भिड़न्त हुई। बुद्धिमान गरुड़ और मयूर में पंख, चोंच, पंजे, मुख और नखों के प्रहार द्वारा युद्ध होने लगा। मयूर और गरुड़ दोनों एक दूसरे पर क्रोधपूर्वक आघात करने लगे। तदनन्तर कुपित हुए महाबली गरुड़ ने उड़कर अपनी चोंच से उद्दीप्त तेज वाले मोर का मस्तक शीघ्रतापूर्वक पकड़ लिया और उसे उछाल-उछालकर दोनों पाँखों से मारना आरम्भ किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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