हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 119 श्लोक 81-100

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकोनविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 81-100 का हिन्दी अनुवाद

उषा के कलंकित हो जाने से हमारा महान कुल कलंकित हो गया। इस दुष्ट मनुष्य ने हमारे दिये बिना ही स्वयं उषा को ग्रहण कर लिया और उसकी पवित्रता नष्ट कर दी। अहो! इस दुष्ट बुद्धि वाले पुरुष का पराक्रम अद्भुत है, धैर्य और धृष्टता भी अद्भुत है, जिससे यह नादान न केवल हमारे नगर में, अपितु हमारे इस घर में भी घुस आया।' ऐसा कहकर बाणासुर ने पुन: किंकरों को विशेष रूप से प्रेरित किया। उसकी आज्ञा पाकर वे कवच आदि से सुसज्जित हो युद्ध के लिये निकल पड़े। वे सब के सब बड़े बलवान थे, अत: जहाँ अनिरुद्ध थे, वहाँ बेखटके जा पहुँचे। उनके हाथों में नाना प्रकार के शस्त्र उठे हुए थे, उनके रूप अनेक प्रकार के थे, वे भय उत्पन्न करने वाले दानव अनिरुद्ध के वध की इच्छा अत्यन्त कुपित हो उठे। किंकरों की उस सेना को देखकर यशस्विनी बाणपुत्री उषा के नेत्रों में आँसू भर आये। वह अनिरुद्ध के मारे जाने के भय से भीत हो रोने लगी। वह ‘हा प्रियतम! हा प्राणनाथ!’ कहकर काँप रही थी। मृगनयनी उषा को रोती देख अनिरुद्ध ने उससे कहा- ‘सुश्रोणि! तुम्हे भय नहीं होना चाहिये। मेरे रहते हुए तुम डरो मत। यह तो तुम्हारे लिये हर्ष का समय आया है। इसमें भय का कोई कारण नहीं है। यशस्विनी! यदि बाणासुर का सारा सेवक समुदाय आ जाय तो भी मेरे लिये चिन्ता की बात नहीं है। भीरु! तुम आज मेरा पराक्रम देखो’।

अपनी ओर आती हुई उस सेना का कोलाहल सुनकर प्रद्युम्‍नकुमार श्रीमान अनिरुद्ध ‘यह क्या है?’ ऐसा कहते हुए सहसा उठकर खड़े हो गये। तदनन्तर उन्होंने देखा कि उस विशाल गृह को चारों ओर से घेरकर नाना प्रकार के आयुधों से सुसज्जित हुई सेना खड़ी है। तब वे तुरंत ही कुपित हो अपने बल का भरोसा करके उस स्थान की ओर चल दिये, जहाँ वह सेना घेरा डालकर खड़ी थी। उस समय उन्होंने अपने होंठ को दाँतों-तले दबा लिया था। इतने में ही बाणासुर के सैनिकों को युद्ध के लिये उपस्थित सुनकर चित्रलेखा ने देवदर्शी नारद जी का स्मरण किया। फिर तो चित्रलेखा के स्‍मरण करने पर मुनिवर नारद जी पलक मारते-मारते शोणितपुर में आ पहुँचे। वहाँ आकाश में स्थित होकर उन्होंने अनिरुद्ध से कहा- 'वीर! तुम्हारा कल्याण हो। तुम डरना मत। मैं भी अब तुम्हारे नगर में आ पहुँचा हूँ।' नारद जी को उपस्थित देख महाबली अनिरुद्ध ने उन्हें प्रणाम किया और प्रसन्नचित्त होकर वे युद्ध के लिये तैयार हो गये। उस समय गर्जना करते हुए उन सभी सैनिकों का कोलाहल सुनकर शूरवीर अनिरुद्ध अंकुश से पीड़ित हुए हाथी की भाँति सहसा उठकर चल दिये। होंठ को दाँतों से दबाकर महल से उतरते और अपनी ओर आते हुए महाबाहु अनिरुद्ध को देखकर कितने ही सैनिक भय से व्याकुल होकर भाग खड़े हुए। अन्त:पुर के द्वार पर रखे हुए अनुपम परिघ को हाथ में लेकर नाना प्रकार के युद्धों में कुशल अनिरुद्ध ने उन सैनिकों के वध के लिये उसे चलाया। तब वे समस्त सैनिक रणभूमि में दिखायी देने वाले अनिरुद्ध पर बाण, गदा, मुसल, खड्ग, शक्ति और शूलों द्वारा प्रहार करने लगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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