हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 119 श्लोक 101-119

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकोनविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 101-119 का हिन्दी अनुवाद

क्रोध में भरे हुए शस्त्रकुशल दानवों द्वारा चारों ओर से नाराचों और परिघों का प्रहार होने पर भी प्रद्युम्‍नकुमार अनिरुद्ध क्षुब्ध नहीं हुए, क्योंकि वे सम्पूर्णभूतों के आत्मा हैं। वे वर्षाकाल के मेघ की भाँति गर्जना करते और भयंकर परिघ घुमाते हुए उन शत्रुओं के बीच में खड़े हो गये। मानो आकाश में मेघ मण्डली के भीतर सब ओर विचरते हुए सूर्य शोभा पा रहे हों। उस समय दण्ड और काला मृगचर्म धारण करने वाले नारद जी मन में हर्ष भरकर अनिरुद्ध से बोले- ‘वीर! बहुत अच्छा! बहुत अच्छा!!’ उस अमित ओज वाले भयंकर परिघ की मार खाकर वे समस्त सैनिक भय से भग खड़े हुए। मानो हवा के वेग से बादल छिन्न-भिन्न हो गये हों। उत्तम पराक्रमी वीर अनिरुद्ध अपने परिघ की मार से दानवों को भागकर रणभूमि में बड़े हर्ष के साथ सिंहनाद करने लगे।

जैसे वर्षाकाल में आकाश के भीतर छाये हुए मेघ बड़े जोर-जोर से गर्जना करते हैं, उसी प्रकार शत्रुसूदन प्रद्युम्‍नकुमार अनिरुद्ध ने गर्जना करके उन रणदुर्मद दानवों से चिल्लाकर कहा- ‘अरे! खडे़ रहो।’ साथ ही उन्होंने सबका संहार आरम्भ कर दिया। उन महामनस्वी वीर के द्वारा समरांगण में मारे जाते हुए समस्त सैनिक युद्ध से विमुख हो गये और भयभीत होकर उस स्थान पर गये, जहाँ बाणासुर विद्यमान था। बाणासुर के समीप खडे़ होकर वे सभी दानव लम्बी साँस खींचने लगे, उन सबके शरीर रक्त से रंग गये थे, भय के कारण उनका चित्त व्याकुल हो गया था, अत: उन दैत्यों को चैन नहीं मिलता था। तब राजा बाणासुर ने उन्हें आदेश देते हुए कहा- ‘दानव शिरोमणियों! डरो मत! डरो मत!! त्रास छोड़ एक साथ खडे़ होकर युद्ध करो’। उसके इतना करने पर भी उनकी आँखें भय से व्याकुल ही बनी रहीं। यह देख बाणासुर ने पुन: उनसे कहा- ‘यह क्या बात है कि तुम लोग अपने विश्वविख्यात यश को दूर से ही त्याग कायरों के समान व्याकुल और अचेत हो रहे हो?

यह कौन है, जिसके भय से डरकर तुम लोग झुंड-के-झुंड भागे जा रहे हो। तुम सब लोगों का कुल विख्यात है तथा तुम नाना प्रकार के युद्धों की कला में निपुण हो तो भी तुम में यह कायरता कैसे आयी? अच्छा, भाग जाओ! अत तुम लोगों से मुझे युद्ध विषयक सहायता नहीं लेनी है, मेरे पास से दूर हो जाओ।' इस प्रकार बलवान बाणासुर ने अपने कठोर वचनों द्वारा उनको बारम्बार त्रास देते हुए दूसरे रणवीर योद्धाओं को, जिनकी संख्या दस हजार के लगभग थी, पुन: युद्ध के लिये आज्ञा दी। तत्पश्चात उसने अनिरुद्ध को बंदी बनाने के लिये एक महाभयंकर सेना को आदेश दिया, जिसमें अधिकांश प्रमथगण थे। वह सेना नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित थी। फिर तो बिजली वाले मेघों की भाँति चमकीले नेत्रों वाले बाणासुर के सैनिकों से आकाश का बहुत बड़ा भाग व्याप्त हो गया। कुछ सैनिक पृथ्वी पर ही खड़े हो सब ओर हाथियों की भाँति चिग्‍घाड़ रहे थे तथा कुछ लोग वर्षाकाल के बादलों की भाँति आकाश में ही शोभा पाते थे। तदनन्तर वह विशाल सेना फिर एकत्र हो गयी। उस समय उसमें सब ओर ‘ठहरो, खड़े रहो’ ये ही बातें सुनायी देती थीं। वीर अनिरुद्ध अकेले ही उन सबका सामना कर रहे थे। एक ने ही जो उस विशाल सेना का सामना किया, यह उस समय एक महान आश्चर्य की बात हुई।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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