महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 57 श्लोक 20-40

सप्तपंचाशत्तम (57) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: सप्तपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 20-40 का हिन्दी अनुवाद


दोनों ही सेनाओं में पैदल वीर रथी को और रथी योद्धा पैदल सैनिक को अपने तीखे अस्त्र-शस्त्रों द्वारा रणभूमि में मार गिराता था। हाथी सवार घुड़सवारों को और घुड़सवार हाथी सवारों को युद्धस्थल में गिरा देते थे। ये घटनाएं आश्चर्यजनक-सी प्रतीत होती थीं। उस रणक्षेत्र में जहाँ-तहाँ श्रेष्ठ गजारोहियों द्वारा गिराये हुए पैदल और पैदलों द्वारा गिराये हुए हाथी सवार दृष्टिगोचर हो रहे थे। घुड़सवारों द्वारा पैदलों के समूह और पैदलों द्वारा घुड़सवारों के समूह सैकड़ों और हजारों की संख्या में गिराये जाते हुए दिखायी देते थे।

भरतश्रेष्ठ! वहाँ इधर-उधर गिरे हुए ध्वज, धनुष, तोमर, प्रास, गदा, परिघ, कम्पन, शक्ति, विचित्र कवच, कणप, अंकुश, चमचमाते हुए खड्ग, सुवर्णमय पांख वाले बाण, शूल, गद्दी और बहुमूल्य कम्बलों द्वारा आच्छादित हुई वहाँ की भूमि भाँति-भाँति के पुष्पहारों से चित्रित हुई-सी जान पड़ती थी। उस महासमर में मनुष्यों, घोड़ों और हाथियों की लाशें पड़ी हुई थीं। मांस और रक्त की कीचड़ जम गयी थी। वहाँ की भूमि में जाना असम्भव हो गया था।

जनेश्वर! रणभूमि में बहे हुए रक्त से सिंचकर धरती की धूल बैठ गयी और सारी दिशाएं साफ हो गयीं। भारत! उस समय जगत के विनाश को सूचित करने वाले असंख्य कबन्ध चारों ओर उठने लगे। उस अत्यन्त दारुण और महाभयंकर युद्ध में रथी योद्धा चारों ओर दौड़ते दिखायी देते थे। तदनन्तर भीष्म, द्रोण, सिन्धुराज जयद्रथ, पुरूमित्र, जय, भेज, शल्य और शकुनि- ये सिंहतुल्य पराक्रमी रणदुर्जय वीर पाण्डवों की सेना को बार-बार भंग करने लगे। भरतनन्दन! इसी प्रकार भीमसेन, राक्षस घटोत्कच, सात्यकि, चेकितान तथा द्रौपदी के पांचों पुत्र- ये सब मिलकर जैसे देवता दानवों को खदेड़ते हैं, उसी प्रकार समस्त राजाओं सहित आपके पुत्रों और सैनिकों को रणभूमि में भगाने लगे। संग्रामभूमि में एक-दूसरे को मारते हुए श्रेष्ठ क्षत्रिय वीर रक्तरंजित हो भयानक रूपधारी दानवों के समान सुशोभित होने लगे। दोनों सेनाओं के वीर शत्रुओं को जीतकर आकाश में फैले हुए विशाल ग्रहों के समान दिखायी देते थे।

तदनन्तर आपका पुत्र दुर्योधन सहस्रों रथियों के साथ पाण्डववंशी राक्षस घटोत्कच के साथ युद्ध करने के लिए वहाँ आया। इसी प्रकार विशाल सेना के साथ समस्त पाण्डव भी युद्ध के लिये तैयार खडे़ हुए शत्रुदमन द्रोणाचार्य और भीष्म से भिड़ने के लिये आगे बढे़। क्रोध में भरे हुए किरीटधारी अर्जुन सब ओर खड़े हुए श्रेष्ठ राजाओं का सामना करने के लिए चले। अभिमन्यु और सात्यकि ने शकुनि की सेना पर आक्रमण किया। इस प्रकार युद्ध में विजय चाहने वाले आपके और पाण्‍डवों के सैनिकों में पुन: रोमान्चकारी संग्राम छिड़ गया।


इस प्रकार श्री महाभारत भीष्म पर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व में युद्ध संबंधी तीसरे दिन का घमासान युद्ध विषयक सत्तावनवां अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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