हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 96 श्लोक 6-10

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 96 श्लोक 6-10

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नैव शक्यास्व्वरमया जेतुं वज्रनाभ विहन्यसे।
अहिं पदा व्यु्त्क्रनमन्‍ वै नचिराद् विनशिष्यलसि।।6।।

वज्रनाभश्च् तद्वाक्यंन नाभिनन्दति भारत।
कालपाशपरीतांगो मर्तुकाम इवौषधम्।।7।।

अभिवाद्य स दुर्बुद्धि: कश्यापं लोकभावनम्।
त्रैलोक्यसविजयारम्भेष मतिं चक्रे दुरासद:।।8।।

ज्ञातियोधान् समानीय मित्राणि सुबहूनि च।
प्रतस्थे स्वरर्गमेवाग्रे विजिगीषन् विशाम्पलते।।9।।

एतस्मिन्नान्तरे देवौ कृष्णेन्द्रौ च महाबलौ।
प्रेषयामासतुर्हंसान् वज्रनाभवधं प्रति।।10।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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