हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 79 श्लोक 11-15

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 79 श्लोक 11-15

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शुभाव्यया गुणिनी युक्तधर्मा भर्त्रा साकं मम दास्या वरेण।
मा कर्मणा मनसा वापि वाचा भर्तुर्भवेयं रुषती स्यां वशंगा।।11।।

सपत्नीमनामधि नित्यंर भवेयं सपुत्रा स्यां सुभगा चारुरूपा।
सम्पन्‍नहस्ता गुणवादिनी च सर्वात्मना स्यां दरिद्रा भवेयम्।।12।।

पतिश्च में स्यात् सुमुखो मत्प्रतीक्षो नित्यंं मद्भक्ता: स्यान्मन्मतिर्मद्गतिश्च ।
प्रीतिश्च नौ स्याच्चक्रवाकानुरूपा मनोविरागो न भवेत् साधुवत् स्यात्।।13।।

लोकान् साध्वीनामुत्तमानां व्रजेयं याभि: सर्वं धार्यते विश्वयरूपम्।
उभे कुले या: शुभा: पावयन्ति पितुर्भर्तुश्च पतिभक्योर्जिताश्च।।14।।

भूमिर्वायुर्जलमाकाशमग्निरन्त‍: क्षेत्रज्ञ: प्रकृतिर्यो महांश्चत।
अहंकारश्च मम साक्ष्ये नियुक्ताे: स्मरेयुर्मे निश्चयं च व्रतं च।।15।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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