हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 66 श्लोक 51-55

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 66 श्लोक 51-55

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ऋजुस्वरभावां भक्तांश च सर्वथा पुरुषोत्ताम।
अवजानासि जानन्‍ मां कैतवीं वृत्तिमास्थित:।।51।।

एतावत् खलु पर्याप्तं दृष्टंथ द्रष्ट व्य1मव्यायम्।
श्रुतं चाप्यनथ यच्छ्रा्व्यं दृष्ट्: स्नेयहफलोदय:।।52।।

यदि त्वचहमनुग्राह्या मामनुज्ञा‍तुमर्हसि।
तपस्येवअहं परं कृत्वाा निश्चटयं पुरुषोत्तषम।।53।।

भर्तुश्छतन्दे न नारीणां तपो वा व्रतकानि वा।
निष्फशलं खलु यद् भर्तुरच्छान्देान क्रियते हि।।54।।

इतीदमुक्वाोअ पुनरेव शोभना मुमोच तोयं नयनोद्भवं सती।
ग्रहाय पीतं हरिवासस: शुभा पटान्त माधाय मुखे शुचिस्मिता।।55।।
 
इति श्रीमहाभारते खिलभागे हरिवंशे विष्णुापर्वणि पारिजातहरणे षट्षष्टितमोअध्यातय:।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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