हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 21 श्लोक 21-25

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 21 श्लोक 21-25

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श्रृंगं चास्‍य पुन: सव्‍यमुत्‍पाट्य यमदण्‍डवत्।
तेनैव प्राहरद् वक्‍त्रे स ममार भृशं हत:।।21।।

स भिन्‍नश्रृंगो भग्‍नास्‍यो भग्‍नस्‍कन्‍धश्‍च दानव:।
पपात रुधिरोद्गारी साम्‍बुधार इवाम्‍बुद:।।22।।

गोविन्‍देन हतं दृष्‍ट्वा दृप्‍तं वषभदानवम्।
साधु साध्विति भू‍तानि तत्‍कर्मास्‍याभितुष्‍टुवु:।।23।।

स चोपेन्‍द्रो वृषं हत्‍वा कान्‍तचन्‍द्रे निशामुखे।
अरविन्‍दाभनयन: पुनरेव ररास ह।।24।।

तेऽपि गोवृत्‍तय: सर्वे कृष्‍णं कमललोचनम्।
उपासांञ्चक्रिरे हृष्‍टा: सर्वे शक्रमिवामरा:।।25।।

इति श्रीमहाभारते खिलभागे हरिवंशे विष्‍णुपर्वणि वृषभासुरवधे एकविंशोअध्‍याय:।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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